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(२४) यह भी संभव है कि विदेह में आने के बाद भगवान् ने एक बार मध्यप्रदेश में भी विहार किया होगा । वैशाली-वाणिज्यगाँव में वर्षावास पर्याप्त हो चुके थे; अतः अगला वर्षावास भगवान् ने मिथिला में ही किया होगा ।
(२५) मिथिला का वर्षावास व्यतीत करके भगवान् राजगृह गये होंगे, क्योंकि गणधर प्रभास इसी वर्ष राजगृह के गुणशील चैत्य में अनशनपूर्वक निर्वाण को प्राप्त हुए थे और भगवान् उनके पास थे । इस दशा में उस वर्ष का वर्षावास भी वहीं किया होगा, यह भी निश्चित है ।
(२६) अचलभ्राता और मेतार्य, इन दो गणधरों का छब्बीस वर्ष के पर्याय में गुणशील चैत्य में निर्वाण हुआ था; अतः इस साल भी भगवान् इसी प्रदेश में विचरे थे और वर्षावास भी मगध के केन्द्र में ही किया होगा ।
(२७-२८) वैशाली-वाणिज्यगाँव में वर्षावास पर्याप्त हो चुके थे और उन्तीसवें तथा तीसवें वर्ष उनकी स्थिरता राजगृह में हुई थी, यह भी निश्चित है, क्योंकि इन्हीं दो वर्षों में भगवान् के छ: गणधर राजगृह के गुणशील वन में मोक्ष को प्राप्त हुए थे और उस समय भगवान् का वहाँ होना अवश्यंभावी है । अतः सत्ताईसवाँ तथा अट्ठाईसवाँ, ये दो वर्षावास भगवान् ने मिथिला में ही किये होंगे, यह स्वतः सिद्ध है ।
(२९) यह वर्षावास राजगृह में हुआ था, यह ऊपर के विवेचन में कहा जा चुका है।
(३०) इस वर्ष में भगवान् मगध में ही विचरे और वर्षावास पावामध्यमा में किया, ऐसा कल्पसूत्र से सिद्ध है । ४. आधारस्तंभ
ऊपर हमने भगवान् महावीर के केवलि-विहार का विवरण दिया है और उसके यथासंभव कारण भी सूचित किये हैं हम उन्हीं बातों के समर्थन के लिये अपनी मान्यता के आधार-स्तंभ और कतिपय हेतुओं का स्वतंत्र उल्लेख करेंगे जिस से कि पाठकगण के लिए हमारा अभिप्राय सुगम हो जाय
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