SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण भगवान् महावीर साधु वर्षा चातुर्मास्य के लिए ग्राम में प्रवेश करें उस समय होनेवाले अपशुकनों का वर्णन करते हुए उक्त भाष्यकार कहते हैं २८६ 'चक्कयरंमि भमाडो, भुक्खामारो य पंडुरंगंमि । तच्चन्नि रुहिरपडनं, बोडियमसिए धुवं मरणं ॥ १०७ ॥ अर्थात् (ग्राम में प्रवेश करते समय ) चक्रधर भिक्षु सामने मिले तो चातुर्मास्य में भटकना पड़े, पांडुरंग आजीवक भिक्षु सामने मिले तो भूख और मार सहन करना पड़े, बौद्ध भिक्षु के सामने मिलने पर खून गिरे और बोटिक दिगम्बर जैन तथा असित - भौत नामक भिक्षुओं के सामने मिलने पर निश्चित मरण हो । उपर्युक्त गाथा में आजीवकों के लिये 'पांडुरंग' और दिगम्बरों के लिये 'बोडिय' नाम प्रयुक्त हुए हैं । यदि वे दोनों एक ही होते तो उनका भिन्नभिन्न नामों से उल्लेख करने की कुछ भी आवश्यकता नहीं रहती । इन सब बातों का विचार करने पर यह बात निश्चित हो जाती है कि दिगम्बर जैन मूल निर्ग्रन्थ संघ का ही एक विभाग है । आजीवक या त्रैराशिकों से इसका कुछ भी संबन्ध नहीं । अब हम आजीवकों के इतिहास पर दृष्टिपात करेंगे । आजीवकों का इतिहास बौद्ध महावंश में लंका के राजा 'पांडुकाभय' के आजीवकों के लिये एक मकान बनवाने का उल्लेख है । यदि महावंशकार का यह कथन ठीक हो तो ई० स० पूर्व पाँचवीं सदी के अंतिम चरण तक आजीवक लंका तक पहुँच गये थे, यही कहना चाहिये । उपलब्ध साधनों में आजीवकों के संबन्ध में सबसे प्राचीन उल्लेख तो गया के पास बर्बर पहाड़ की एक गुफा की दीवार पर खुदे हुए अशोक के एक लेख में है । इसमें लिखे मुजब यह लेख महाराजा अशोक के राज्य के तेरहवें वर्ष में खोदा गया था । इस लेख का भाव यह है- 'राजा प्रियदर्शी ने अपने राज्य के तेरहवें वर्ष में यह गुफा आजीवकों को अर्पण की ।' Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy