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आजीवकमत-दिग्दर्शन
२८३ एक तो त्रैराशिक गोशालक के ही शिष्य थे इस बात का कुछ प्रमाण नहीं है। दूसरा उन्हें गोशालक के मतानुयायी मान लेने पर भी इससे यह सिद्ध होना कठिन है कि गोशालक की भी यही मान्यता थी क्योंकि गोशालक के स्वर्गवास के बहुत पीछे त्रैराशिक संप्रदाय निकला था । आजीवक और दिगम्बर
पूर्वोक्त नन्दीसूत्र के उल्लेखानुसार पूर्वश्रुत में आजीवक और त्रैराशिक मतानुसारी सूत्रपरिपाटी का वर्णन होने से डा० हार्नले का कथन है कि जिन आजीवक और त्रैराशिकों का नन्दी में उल्लेख है वे गोशालक से बदल कर महावीर के पास गये हुए आजीवक थे । ये दोनों सम्प्रदाय निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय से पृथक् नहीं थे । उनका यह भी कथन है कि वर्तमान दिगम्बर जैन संघ उन्हीं आजीवक और त्रैराशिकों का उत्तराधिकारी है । इसके प्रतिपादन में वे कहते हैं :
(१) महावीर के साथ गोशालक का झगड़ा हुआ उस समय जो आजीवक भिक्षु महावीर से जा मिले थे उन्होंने अपना नाग्न्याचार कायम रक्खा था ।
(२) आजीवक और त्रैराशिकों के मत का पूर्वश्रुत में वर्णन होने से ये निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के वर्तुल के बाहर के नहीं हो सकते ।
(३) आजीवक नग्न होते थे और दिगम्बर भी नग्न होते हैं । (४) आजीवक एक दण्ड रखते थे और दिगम्बर भी रखते हैं । (५) तामिल भाषा में आजीवक शब्द का अर्थ दिगम्बर होता है ।
(६) शीलाङ्काचार्य के लेख से आजीवक और दिगम्बर एक साबित होते हैं।
(७) दसवीं सदी के कोषकार हलायुध ने दिगम्बरों को आजीवक लिखा है।
(१) डा० महोदय के 'महावीर से जा मिलनेवाले आजीवक भिक्षु निर्ग्रन्थ संघ में मिलने के बाद भी नग्न ही रहे थे' इस कथन में कुछ भी
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