________________
आजीवकमत-दिग्दर्शन
२७९ एक और योजना यहाँ उद्धृत करेंगे जिससे यह जाना जा सकेगा कि वे कैसे नियतिवादी धार्मिक सिद्धान्तोंपर विश्वास रखनेवाले होते थे । बौद्ध दीर्घनिकाय में आजीवकों के सिद्धान्तों में लिखा है
चौदह लाख मुख्य प्रकार के जन्म हैं । फिर वे छ: हजार (अथवा दल्व मुजब साठ हज़ार) और छ: सौ दूसरे हैं । कर्म के पाँच सौ प्रकार है, (पंचेन्द्रिय के अनुसार) फिर पाँच भी हैं और (मन, वचन, काया मुजब) तीन भी हैं, और पूरा कर्म और आधा कर्म, इस प्रकार दो भी है (पूरा अर्थात् मन वचन काया से किया हुआ कर्म और आधा अर्थात् केवल मन से किया हुआ कर्म) । आचरण के बासठ प्रकार हैं । आन्तरकल्प बासठ होते हैं । मनुष्यों में छ: वर्ग (अभिजाति) हैं । मानव जीवन की आठ अवस्थायें हैं । चार हज़ार नौ सौ प्रकार के अजीव हैं । चार हजार नौ सौ प्रकार के परिव्राजक हैं । नागलोग में आबाद उनचास प्रदेश हैं । दो हज़ार शक्तियाँ हैं। तीन हज़ार पापमोचन स्थान हैं । छत्तीस धूलराजियाँ हैं । संज्ञी आत्माओं में से सात उत्पत्तियाँ हैं, असंज्ञी प्राणियों में से सात उत्पत्तियाँ हैं और (ईख) की दो गाँठों के बीच में से सात उत्पत्तियाँ हैं । सात प्रकार देवों के हैं । सात मनुष्यों के हैं । सात पिशाचों के हैं । सात सरोवरों के हैं । सात बड़े
और सात सौ छोटे जलप्रपात हैं । सात आवश्यक और सात अनावश्यक स्वप्न हैं । चौरासी लाख महाकल्प हैं जहाँ बाल और पण्डित दोनों समान रीति से संसार में भटक-भटक कर अन्त में अपने दुःखों का अन्त करेंगे । यद्यपि बाल अमुक शील, व्रत, तप और ब्रह्मचर्य द्वारा अपरिपक्व कर्मों को परिपक्व करने की आशा करेंगे और पण्डित इन्हीं साधनों द्वारा परिपक्व हुए कर्मों से छूटने की आशा करेंगे, परन्तु दो में से एक भी कृतकार्य नहीं हो सकेंगे । मानो नाप नाप कर दिये हों, ऐसे सुख-दुःखों को संसार में कोई नहीं बदल सकता । इनमें न वृद्धि हो सकती है, न हानि । जैसे रस्सी के बंडल को उकेरने पर उसकी लंबाई तक ही उकेरा जायगा ज्यादा नहीं, वैसे ही बाल और पंडित दोनों समान रीति से नियत समय तक संसार भ्रमण करेंगे और उसके बाद ही उनके दुःखों का अन्त होगा ।'
अन्तिम नियतिवाद के उपदेश को छोड़ कर यही योजना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org