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________________ २७८ श्रमण भगवान् महावीर नियत हैं । श्रमण भगवान् महावीर की धर्मप्रज्ञप्ति अच्छी नहीं । उसमें उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुष-पराक्रम कारण माने गये हैं, क्योंकि उनके मत में सर्वभाव अनियत हैं । इसी सूत्र के सातवें अध्ययन में आजीवकोपासक सद्दालपुत्र और महावीर का वार्तालाप है । अपने मिट्टी के बर्तन इधर उधर करते हुए सद्दालपुत्र से भगवान् महावीर पूछते हैं-'सद्दालपुत्र ! यह बर्तन कैसे बना ? पुरुषपराक्रम से या उसके बगैर ?' उत्तर में सद्दालपुत्र कहता है-'ये मृत्तिकाभाण्ड नियतिबल से बनते हैं, पुरुषपराक्रम से नहीं । सभी पदार्थ नियतिवश होते हैं । जिसका जैसा होना नियत होता है वह वैसे ही होता है । उसमें पुरुषपराक्रम कुछ भी परिवर्तन नहीं कर सकता, क्योंकि सर्वभाव नियत होते हैं।' बौद्ध दीर्घनिकाय में गोशालक के सिद्धान्तों का सारांश इस प्रकार है __ 'प्राणियों की भ्रष्टता के लिये निकट का अथवा दूर का कोई कारण नहीं है। वे बगैर निमित्त अथवा कारण के भ्रष्ट होते हैं। प्राणियों की पवित्रता के लिये निकट या दूर का कोई कारण नहीं है। वे बगैर निमित्त या कारण के ही पवित्र होते हैं । कोई भी अपने खुद के अथवा दूसरों के प्रयत्नों पर आधार नहीं रखता । संक्षेप में सारांश यही है कि कुछ भी पुरुष-प्रयास पर अवलंबित नहीं है, क्योंकि शक्ति, पौरुष अथवा मनुष्यबल जैसी कोई चीज ही नहीं है । प्रत्येक सविचार (उच्चतर प्राणी), प्रत्येक सेन्द्रियवस्तु (अधमतर कोटि के प्राणी), प्रत्येक प्रजनित वस्तु (प्राणीमात्र) और प्रत्येक सजीव वस्तु (सर्व वनस्पति) बलहीन, प्रभावहीन और शक्तिहीन है । इनकी भिन्न-भिन्न अवस्थायें विधिवश वा स्वभाववश होती हैं और षड् वर्गों में से एक अथवा दूसरे की स्थिति के अनुसार मनुष्य सुख-दु:ख के भोक्ता बनते हैं । आजीवक कैसे कट्टर नियतिवादी होते थे, इस बात को प्रमाणित करने के लिये ऊपर के जैन और बौद्ध वर्णन ही पर्याप्त हैं, तथापि हम उनकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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