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श्रमण भगवान् महावीर बौद्धागम विनयपिटक और मज्झिमनिकाय में बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त होने के बाद तुरन्त एक 'उपक' नामक आजीवक भिक्षु के मिलने और उनके आगे अपने अध्यात्मिक अनुभव प्रकट करने का कथन है ।
यदि आजीवक संघ की स्थापना गोशालक ने की होती तो बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त होते ही आजीवक भिक्षु का मिलना असम्भव था, क्योंकि महावीर को बत्तीस वर्ष की उम्र में जब पहले पहल गोशालक उन्हें मिला, उस समय उसकी किशोरावस्था थी । किशोरावस्था से हम १५-१६ वर्ष का अनुमान करते हैं । जिस समय कि महावीर को प्रव्रज्या लिये लगभग दो वर्ष हो चुके थे उस समय वह शिष्य होकर उनके साथ हुआ और नवें वर्ष उनसे जुदा हो श्रावस्ती में छ: मास तक आतापनापूर्वक तपस्या कर तेजोलेश्या प्राप्त की और बाद में निमित्तशास्त्र का अध्ययन कर वह आजीवक संघ का नेता बना । निमित्ताध्ययन आदि के लिये यदि तीन चार वर्ष का समय और ले लिया जाय तो गोशालक का आजीवक संघ का नेतृत्व ग्रहण करना और महावीर का तीर्थंकर पद प्राप्त करना लगभग एक ही समय में हुआ, यह कहा जा सकता है ।
हमारी गणना के अनुसार महावीर ने अपनी उम्र के तेतालीसवें वर्ष में जब तीर्थंकर पद प्राप्त किया उस समय बुद्ध को पैंसठवाँ वर्ष चलता था
और तबतक उनको बुद्धत्व प्राप्त हुए भी अठाईस वर्ष हो चुके थे । इस परिस्थिति में बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त होते ही गोशालक स्थापित आजीवक संघ के भिक्षु का मिलना बिलकुल असंभव है।
यदि बुद्ध और महावीर के बीच में इतना अन्तर न मानकर डा० स्मिथ आदि की मान्यता के अनुसार महावीर का निर्वाण बुद्ध के निर्वाण से एक दो वर्ष पहले मान लिया जाय तो भी महावीर के तीर्थंकर होने के पूर्व बारह वर्ष ऊपर बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त हो जाता है। उस समय गोशालक का आजीवक संघ का नेता होना तो दूर रहा, वह महावीर का शिष्य भी नहीं बन पाया था ।
इस प्रकार बुद्ध को बुद्ध होने के समय गोशालक का किसी भी
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