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________________ आजीवकमत-दिग्दर्शन प्रचलित किया। डा० ए० एफ० आर० हार्नले का कथन है कि 'आजीवक भिक्षुसंघ का स्थापक मंखलिपुत्र गोशालक है' । इस कथन की पुष्टि वे जैन शास्त्रों का नाम लेकर करते हैं । हमारे विचार में 'आजीवक संघ का संस्थापक गोशालक था अथवा नियतिवाद की मान्यता गोशालक ने प्रचलित की' इस अभिप्राय का स्पष्ट कथन किसी भी जैन शास्त्र में नहीं है । २६९ आवश्यकचूर्णि और कल्पसूत्र की टीकाओं में तीन जगह गोशालक के 'नियति' पर विश्वास करने का उल्लेख है । भगवतीसूत्र के पन्द्रहवें शतक में और उपासकदशा के सातवें अध्ययन में गोशालक के आजीवक भिक्षुसंघ का मुखिया होने की सूचनायें हैं और उसके नियतिवादी होने का स्पष्ट कथन तो उपासकदशा के छठे और सातवें अध्ययन के अतिरिक्त अन्यत्र भी अनेक जगह है, पर इन सब उल्लेखों से भी 'गोशालक' आजीवक मत और संघ का संस्थापक था यह बात सिद्ध नहीं हो सकती । इसके विपरीत इन उल्लेखों से तो यह सिद्ध होता है कि उस समय में नियतिवाद एक चिरप्रचलित मान्यता थी जिसकी गोशालक अपने किसी भी प्रयत्न की निष्फलता में दुहाई दिया करता था; और आजीवक संघ एक संघटित संस्था थी, जिसका मुखिया बनकर गोशालक बड़ी आसानी से अपने को तीर्थंकर मनवाने में सफल हुआ था । महावीर ने तत्कालीन अन्यतीर्थिकों को चार विभागों में बाँटा था जिसमें नियतिवादियों का नम्बर चौथा था । यदि नियतिवाद का प्रवर्तक मंखलि गोशालक ही होता तो हमारा ख्याल है कि महावीर उसे इतना महत्त्व कभी नहीं देते, क्योंकि उनकी दृष्टि में मंखलिपुत्र गोशालक और उसकी शक्ति कोई महत्त्व नहीं रखते थे । इससे ज्ञात होता है कि महावीर के समय में 'नियतिवादी' आजीवक संघ एक चिर प्रचलित सुदृढ संस्था थी । इसीलिये महावीर को उसके खंडन की आवश्यकता प्रतीत हुई थी । आजीवक संघ गोशालक से भी पहले था इसकी एक सूचना बौद्ध ग्रन्थों से भी मिलती है । Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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