________________
भगवान् महावीर के पूर्वभव
२५९ __ अपने पुत्रों को डांटते हुए प्रजापति ने कहा—यह तुमने अकालमृत्यु को जगाया । हमारी बारी न होने पर भी हमें यह आज्ञा मिली । यह तुम्हारे औद्धत्य का फल है । अपने स्वामी की आज्ञा शिरोधार्य करके राजा सेना के साथ प्रयाण करने लगे तब राजकुमारों ने कहा-आप यहीं रहिये । इस काम के लिये तो हमीं जायेंगे । राजा के रोकने पर भी कुमार चले गये और मौके पर पहुँच कर कृषकों से पूछा--अन्य राजा लोग आकर यहाँ किस रीति से रक्षण करते हैं ? लोगों ने कहा—जबतक खेतों में धान्य रहता है वे चतुरंगिनी सेना का घेरा डाल कर यहाँ रहते हैं और सिंह से लोगों की रक्षा करते हैं । त्रिपृष्ठ बोला-इतने समय तक कौन ठहरेगा ? मुझे वह स्थान बता दो जहाँ सिंह रहता है । लोगों ने त्रिपृष्ठ को सिंहवाली गुफा दिखायी । कुमार रथ में बैठ कर गुफा के द्वार पर पहुँचा । लोगोंने दोनों तरफ से शोर किया जिससे चौंक कर सिंह गुफा के द्वार पर आया । कुमार ने सोचा यह तो पैदल है और मैं रथिक ! यह विषम युद्ध है । ढाल तलवार के साथ वह रथ से उतर गया और फिर सोचने लगा-यह दंष्ट्रा-नखायुध है और मैं ढाल-तलवारधारी ! यह भी ठीक नहीं । उसने ढाल तलवार भी छोड़ दिये । यह देखकर सिंह के क्रोध का पार न रहा । वह मुँह फाड़ कर कुमार पर झपटा । त्रिपृष्ठ ने पहले ही झपाटे में उसे दोनों जबड़ों से पकड़ा और जीर्ण वस्त्र की तरह फाड़ कर फेंक दिया । यह देख कर जनता ने जोरों का हर्षनाद किया ।
त्रिपृष्ठ सिंह की खाल लेकर अपने नगर की तरफ चला । जाते समय उसने ग्रामीणों से कहा-घोटकग्रीव से कह देना कि अब वह निश्चिन्त रहे ।
लोगों ने सब हकीकत अश्वग्रीव के पास पहुँचा दी । वह बहुत रुष्ट हुआ और दूत भेज कर प्रजापति को कहलाया-अब तुम वृद्ध हो गये हो अतः सेवा में कुमारों को भेज दो । तुम्हारे आने की जरूरत नहीं ।
प्रजापति ने कहा-मैं खुद सेवा में आने के लिए तैयार हूँ।
अश्वग्रीव ने अतिक्रुद्ध होकर कहलाया-कुमारों को न भेजकर तूने हमारी आज्ञा का अनादर किया है अतः युद्ध के लिये तैयार हो जा ।
कुमारों ने इस समय भी दूत को अपमानित कर निकाल दिया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org