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श्रमण भगवान् महावीर अठारहवाँ और उन्नीसवाँ भव
महाशुक्र देवलोक से निकल कर बलाधिक का जीव पोतनपुर में त्रिपृष्ठ नामक वासुदेव हुआ । पोतनपुर के राजा प्रजापति, प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव के मण्डलिक थे । उनके दो पुत्र थे, एक अचल और दूसरा त्रिपृष्ठ ।
एक समय पोतनपुर की राजसभा में नाच-रंग हो रहा था । राजा, दोनों राजकुमार और सभासदगण उसमें मस्त हो रहे थे । ठीक उसी समय अश्वग्रीव का दूत कार्यवश राजसभा में आया । राजा ने संभ्रमपूर्वक दूत का स्वागत किया और जलसा बंद करवा कर उसका संदेश सुनने लगे ।
रंग में भंग करनेवाले दूत पर कुमार बहुत बिगड़े । उन्होंने अपने आदमियों से कहा-जब यहाँ से दूत रवाना हो, हमें सूचित करना ।।
सत्कारपूर्वक राजा से बिदा लेकर दूत रवाना हुआ । दोनों कुमारों को इसकी सूचना मिली और उन्होंने पीछे से जाकर दूत को पीटा । दूत के साथी उसे छोड़कर भाग गये ।
प्रजापति को जब इस घटना के समाचार मिले तो उन्हें बड़ा रंज हुआ । दूतको वापस बुलवा कर दुगुना तिगुना पारितोषिक दिया और कहाराजा से इस बात की शिकायत न करियेगा । दूत मान गया, पर उसके साथी उसके पहले ही राजा के पास पहुँच गये और यह सब वृत्तान्त अश्वग्रीव को निवेदन कर चुके थे ।
दूत के अपमान की बात सुन कर अश्वग्रीव बहुत नाराज हुआ और अपने दूत को तिरस्कृत करनेवाले दोनों राजपुत्रों को जान से मरवा डालने का उसने निश्चय कर लिया ।
अश्वग्रीव को किसी भविष्यवेत्ता ने कह रक्खा था कि जो मनुष्य तुम्हारे चण्डमेघ दूत को पीटेगा और महाबलिष्ठ सिंह को मारेगा वही तुम्हारी मृत्यु का कारण होगा ।
___अश्वग्रीव ने दूसरा दूत भेज कर प्रजापति को कहलाया-तुम अमुक जगह जा कर हमारे शालिक्षेत्रों की रक्षा करो ।
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