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श्रमण भगवान् महावीर पाँचवाँ भव
ब्रह्मदेव लोक में दस सागरोपम का आयुष्य पूर्ण कर बलाधिक का जीव कोल्लाग सन्निवेश में कौशिक नामक ब्राह्मण हुआ । उसने अस्सी लाख पूर्व वर्ष का आयुष्य पाया था । अपने उस दीर्घ जीवन में उसने अनेकविध कर्म किये और मर कर बहुतेरे भव किये जिनकी संख्या नहीं है । छठा और सातवाँ भव
छठे भव में बलाधिक का जीव थूणा नगरी में पुष्यमित्र नामक ब्राह्मण हुआ । उसका आयुष्य सत्तर लाख पूर्व वर्ष का था । अपने उस दीर्घ जीवन का अधिकांश गृहस्थाश्रम में बिता कर वह परिव्राजक बना और आयुष्य पूर्ण करके सौधर्म देवलोक में देव हुआ । आठवाँ और नवाँ भव
देवलोक से च्युत होकर बलाधिक का जीव चैत्य संनिवेश में अग्निद्योत ब्राह्मण हुआ । अग्निद्योत भी अन्त में परिव्राजक बना और चौसठ लाख पूर्व वर्ष का आयुष्य समाप्त करके ईशान देवलोक में मध्यमस्थितिक देव हुआ । दसवाँ और ग्यारहवाँ भव
ईशान देवलोक से च्युत होकर बलाधिक का जीव दसवें भव में मंदिर संनिवेश में अग्निभूति ब्राह्मण हुआ । अन्त में उसने परिव्राजक मत की दीक्षा ली और छप्पन लाख पूर्व वर्ष का आयुष्य समाप्त कर ग्यारहवें भव में सनत्कुमार देवलोक में मध्यमस्थितिक देव हुआ । बारहवाँ और तेरहवाँ भव
सनत्कुमार देवलोक से निकल कर बलाधिक का जीव श्वेतांबिका नगरी में भारद्वाज नामक ब्राह्मण हुआ और अन्त में परिव्राजक बन कर चवालीस लाख पूर्व वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर माहेन्द्र कल्प में देव हुआ । माहेन्द्र देवलोक से निकलने के बाद उसने कुछ काल तक अनियत संसार
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