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________________ के केवलिजीवन के चौदहवें वर्ष में घटी थी तब भगवान् को अभी तेरहवा वर्ष ही चलता था, इस दशा में राजगृह से भी भगवान् का श्रावस्ती की तरफ जाना संगत नहीं होता । यद्यपि 'ग' चरित्र ने केवलि-अवस्था में भगवान् मिथिला जाने का कहीं उल्लेख ही नहीं किया है, परन्तु भगवान् ने अपने केवलिजीवन के ६ वर्षावास मिथिला में बिताये थे इस लिए यह अनुमान करना कठिन नहीं है कि भगवान् महावीर मिथिला में कितने विचरे होंगे । इस सब आधारों पर से हमारा निश्चित मत है कि राजगृह के बाद भगवान् मिथिला की तरफ विचरे थे और वर्षावास भी वहीं किया था । (१४) वर्षाकाल के बाद भगवान् मिथिला से अंगदेश की तरफ विचरे थे, क्योंकि उन दिनों वैशाली कोणिक की युद्धस्थली बनी हुई थी । राजगृह से मगध का राज्यासन चम्पा को चला जाने से उन दिनों चम्पा ही सब का लक्ष्यबिन्दु बनी हुई थी । सूत्रों में भी उल्लेख मिलते हैं कि जिस समय मगधराज कोणिक वैशालीपति चेटक के साथ घमासान युद्ध कर रहा था, भगवान् महावीर चम्पा में विचरते थे। कालकुमार आदि श्रेणिक के दस पुत्रों के युद्ध में काम आने के समाचार भगवान् के ही मुख से उनकी माताओं ने सुने थे। यद्यपि चम्पा भी भगवान् का विहारक्षेत्र था तथापि उसकी वर्षावास योग्य केन्द्रों में गणना नहीं थी । इस कारण वर्षावास भगवान् ने वापस मिथिला में जाकर किया था । (१५) वर्षावास उतरते ही भगवान् श्रावस्ती की तरफ विचरे और श्रावस्ती के कोष्ठकोद्यान में गोशालक के साथ वादविवाद हुआ था । उसके बाद में भी भगवान् उसी प्रदेश में विचरे थे । छठे महीने वे मेंढियग्राम के सालकोष्ठक में सख्त बीमार थे । मार्गशीर्ष महीने में भगवान् पर गोशालक ने तेजोलेश्या डाली थी और उसके असर से उनके शरीर में जो दाहज्वर और व!व्याधि उत्पन्न हुई थी, वह ज्येष्ठ महीने में पराकाष्ठा को पहुँची । आखिर उन्होंने सिंह अनगार द्वारा श्राविका रेवती के यहाँ से औषध मंगाकर सेवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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