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________________ २९ में उन्होंने कोशल-पाञ्चालादि प्रदेशों में विहार किया और काम्पिल्य में कुण्डकौलिक और पोलासपुर में सद्दालपुत्र आदि को प्रतिबोध दिया और वर्षावास वैशाली-वाणिज्य ग्राम में किया था । (१०) 'ख' और 'ग' के लेखानुसार काम्पिल्य और पोलासपुर से भगवान् राजगृह पधारे थे और महाशतक को प्रतिबोधित किया था । हमारा भी यही अभिप्राय है कि उक्त स्थानों के विहार के बाद वाणिज्यग्राम में वर्षावास करके भगवान् राजगृह पधारे थे और महाशतकादि को प्रतिबोध दिया था तब वर्षावास भी वहीं किया होगा क्योंकि मगध में वर्षावास का वही केन्द्र था । (११) 'ख' और 'ग' के लेखानसार भी महाशतक के प्रतिबोध के बाद भगवान् राजगृह से श्रावस्ती की तरफ विचरे थे और नन्दिनीपिता आदि को प्रतिबोधित किया था । हमारे मत से बीच में कयंगला निवासी स्कन्धक कात्यायन का बोध भी इसी विहार में हुआ था और अगला वर्षावास भी निकटस्थ केन्द्र वाणिज्यग्राम में ही हुआ था । (१२) 'ख' और 'ग' दोनों चारित्रों के अभिप्राय से श्रावस्ती के बाद भगवान् फिर कौशाम्बी गये थे और चन्द्र-सूर्य का अवतरण हुआ था । हमारे विचारानुसार श्रावस्ती से सीधे कौशाम्बी नहीं किन्तु वाणिज्यग्राम में वर्षावास पूरा करने के बाद वहाँ गए थे । उक्त दोनों चरित्रों के मत से भगवान् कौशाम्बी से फिर श्रावस्ती गये और गोशालक का उपद्रव हुआ था, परन्तु हमारी राय में कौशाम्बी से भगवान् राजगृह गये थे और वर्षावास भी वहाँ किया था, क्योंकि गोशालक का उपद्रव, समय के हिसाब से मार्गशीर्ष मास में हुआ सिद्ध हुआ है । इससे यह तो मानना ही पड़ेगा कि भगवान् कौशाम्बी से सीधे ही श्रावस्ती नहीं गये थे । इस दशा में हमें यही मानना चाहिये कि कौशाम्बी से वे राजगृह गये होंगे और वर्षावास वहीं किया होगा । (१३) राजगह से मार्गशीर्ष महीने में श्रावस्ती जाकर भगवान् गोशालक के विरुद्ध व्याख्यान नहीं दे सकते थे, दूसरे गोशालकवाली घटना भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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