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श्रमण भगवान् महावीर कर्मों से न डरनेवाले अक्रियावादी क्रियाओं का अस्तित्व ही नहीं मानते । पर जब वे अपने ही वचनों से मिश्राभाव को प्राप्त होते हुए पकडे जाते हैं तो प्रत्युत्तर न देते हुए गूंगे हो जाते हैं अथवा 'हमारे मत में कोई विरोध नहीं' ऐसा कह कर अपना पिण्ड छुड़ाते हैं ।
परमार्थ को न समझते हुए अक्रियावादी ऐसी ऐसी विपरीत बातें कहते हैं जिन्हें अंगीकार करके अनेक मनुष्य संसार-भ्रमण करते हैं। वे कहते हैंन सूर्य उदय-अस्त होता है, न चन्द्रमा बढ़ता-घटता है, न जल बहता है और न वायु चलती है । यह संपूर्ण लोक केवल शून्यमात्र है । जैसे अन्धा नेत्र न होने से प्रकाश में भी रूप नहीं देख सकता वैसे ही कुण्ठितबुद्धि अक्रियावादी लोग प्रत्यक्ष पदार्थ-क्रिया को भी नहीं देखते ।
__ अनेक बुद्धिमान् मनुष्य ज्योतिष, स्वप्न, लक्षण, निमित्त, उत्पात और अंगविद्या प्रभृति अष्टांग निमित्त का अभ्यास करके भी संसार में होनेवाले भावों को जान लेते हैं । हाँ, उनमें से किसी का वह ज्ञान शास्त्र का रहस्य न जानने के कारण असत्य भी निकल सकता है, पर इससे विद्या का ही त्याग करना और पदार्थमात्र का निषेध कर देना ठीक नहीं ।
__ जो यथार्थवेदी श्रमण-ब्राह्मण क्रियावादी हैं, वे लोगों के सामने यह उपदेस करते हैं—संसार में जो दुःख है वह अपनी ही करनी का फल है । सज्ज्ञान और सच्चारित्र से इस दुःख से मुक्ति हो सकती है । यथार्थवेदी उपदेशक ही लोकचक्षु और लोकनायक हैं और वे ही प्रजा को हितमार्ग का उपदेश कर सकते हैं। ऐसे हितोपदेशकों से ही मानव-समाज को इस संसार की अशाश्वतता का बोध हो सकता है ।
____ इस संसार में राक्षस, भूत, देव, गन्धर्व, आकाशगत और पृथिवीगत जो कोई देहधारी हैं वे सब विनश्वर हैं, कोई अमर नहीं ।
जिसे अगाध और अपार जल कहते हैं वही दुर्मोच्य गहन संसार है जिसमें डूबे हुए विषयाभिलाषी प्राणी यहाँ मारे-मारे फिरते हैं और परलोक में दुर्गतियों की पीड़ाओं का अनुभव करेंगे ।
अज्ञानी निरन्तर प्रवृत्ति करते हुए भी कर्मों को नहीं तोड़ सकते और
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