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________________ २२४ श्रमण भगवान् महावीर मिथिला के रहनेवाले गौतमगोत्रीय ब्राह्मण थे । आपकी माता जयन्ती और पिता देव थे । विद्वान् अकम्पित तीन सौ छात्रों के आचार्य थे । आप भी अपनी छात्रमण्डली के साथ सोमिलार्य के यज्ञमहोत्सव पर पावामध्यमा आये हुए थे । इनको नरकलोक और नरकजीवों के अस्तित्व में शंका थी । इस शंका का कारण "न ह वै प्रेत्य नरके नारकाः सन्ति" यह श्रुति वाक्य था, परन्तु इसके विपरीत "नारको वै एष जायते य: शूद्रान्नमश्राति" इत्यादि वाक्यों से नारकों का अस्तित्व भी सिद्ध होता था । इस प्रकार के द्विविध वेद वचनों से शंकाकुल बने हुए अकम्पित इस बात का कुछ भी निर्णय नहीं कर सकते थे कि नरक और नारकों का अस्तित्व माना जाय या नहीं । भगवान् महावीर ने श्रुतिवाक्यों का समन्वय करके अकम्पित का संदेह दूर किया । अकम्पित भी निर्ग्रन्थप्रवचन का उपदेश सुनकर संसार से विरक्त हुए और छात्रगण सहित आर्हती प्रव्रज्या स्वीकार की और भगवान् महावीर के आठवें गणधर हो गये । अकम्पित ने अडतालीस वर्ष की अवस्था में गृह-त्याग किया, सतावन वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया और श्रमण भगवान् की जीवितावस्था के अन्तिम वर्ष में गुणशील चैत्य में मासिक अनशन पूरा करके अठहत्तर वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया । (९) अचलभ्राता __ अचलभ्राता कोशला निवासी हारीतगोत्रीय ब्राह्मण थे । आपकी माता नन्दा और पिता वसु थे । ये तीन सौ छात्रों के विद्वान् अध्यापक थे और सोमिलार्य के यज्ञोत्सव में पावामध्यमा आये थे । ___ पण्डित अचलभ्राता को पुण्य-पाप के अस्तित्व में शंका थी । इनका तर्क यह था कि “पुरुष एवेदं ग्नि०" इत्यादि श्रुतिपदों से जब केवल पुरुष का ही अस्तित्व सिद्ध किया जाता है तब पुण्य - पाप के अस्तित्व की शक्यता ही कहाँ रहती है ? परन्तु दूसरी तरफ "पुण्यः पुण्येन०" इत्यादि वेदवाक्यों से पुण्यपाप का अस्तित्व भी सूचित होता था । इसलिए इस विषय का वास्तविक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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