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________________ २२० श्रमण भगवान् महावीर के अन्त में ७४ वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया । (३) वायुभूति गौतम वायुभूति इन्द्रभूति के छोटे भाई थे । ये भी सोमिलार्य के यज्ञोत्सव पर अपने पाँच सौ छात्रों के साथ पावामध्यमा में आये हुए थे । वायुभूति के दार्शनिक विचारों का झुकाव 'तज्जीवतच्छरीरवादी' नास्तिकों के मत की तरफ था । "विज्ञाघन० " इत्यादि पूर्वोक्त श्रुतिवाक्य को वे अपने नास्तिक मत के विचारों का समर्थक मानते थे, परन्तु दूसरी ओर "सत्येन लभ्यस्तपसा ह्येष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुद्धो यं पश्यन्ति धीरा यतयः संयतात्मनः" इत्यादि उपनिषद् वाक्यों से देहातिरिक्त आत्मा का प्रतिपादन होता था । इस द्विविध वेदवाणी से वायुभूति इस विषय में शङ्काशील बने हुए थे, परन्तु महावीर ने शरीरातिरिक्त आत्मतत्त्व का प्रतिपादन करके इनके मानसिक संशयों को दूर किया और पाँच सौ छात्रों के साथ प्रव्रज्या देकर इन्हें अपना तीसरा प्रधान शिष्य बनाया ।। वायुभूति ने बयालीस वर्ष की अवस्था में गृहवास को छोड़कर श्रमणधर्म की दीक्षा ली । दस वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहने के उपरान्त इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और अठारह वर्ष केवली अवस्था में विचरे । महावीर के निर्वाण के दो वर्ष पहले वायुभूति भी ७० वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन के अन्त में गुणशील चैत्य में निर्वाण को प्राप्त (४) आर्य व्यक्त भगवान् महावीर के चौथे गणधर का नाम आर्य व्यक्त था । ये कोल्लाग संनिवेश निवासी भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मण थे । इनकी माता वारुणी और पिता धनमित्र थे । आर्य व्यक्त भी पाँच सौ छात्रों के अध्यापक थे और सोमिलार्य के आमंत्रण से यज्ञोत्सव पर पावामध्यमा में आये थे । आर्य व्यक्त की विचारसरणी "स्वप्नोपमं वै सकलमित्येष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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