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शिष्य-सम्पदा
२१९ ___ भगवान् महावीर इन्द्रभूति के इनके भक्तिराग के विषय में टोका करते और कहते-गौतम ! जबतक तेरे मुझ पर के राग-बन्धन न टूटेंगे तबतक तेरे कर्म-बन्ध भी टूटनेवाले नहीं । हाँ, अन्त में तू और मैं एक ही दशा को प्राप्त करेंगे ।
जिस रात्रि में महावीर का निर्वाण हुआ उसी रात्रि के अन्त में इन्द्रभूति गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ और उसके बाद आप बारह वर्ष तक जीवित रहे । इस अवस्था में आपकी अधिक प्रवृत्ति भगवान् के धर्मप्रचार की तरफ रही ।
__ अन्त में अपनी आयुष्य-स्थिति समाप्त होती देखकर इन्द्रमति ने अपना गण आर्य सुधर्मा के सुपुर्द किया और आप गुणशील चैत्य में मासिक अनशन करके भगवान् के निर्वाण से बारह वर्ष के बाद ९२ वर्ष की अवस्था में निर्वाण को प्राप्त हुए । (२) अग्निभूति गौतम
अग्निभूति गौतम इन्द्रभूति गौतम के मझले भाई थे। अग्निभूति भी पाँच सौ छात्रों के विद्वान अध्यापक थे और सोमिलार्य के यज्ञोत्सव पर छात्रगण के साथ पावामध्यमा आए थे। अग्निभूति के मन पर "पुरुष एवेदं ग्नि सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यं उतामृतत्वस्येशानो यदनेनातिरोहति यदेजति यत्रैजति यहुरे यदु अन्तिके यदन्तरस्य सर्वस्य यदु सर्वस्यास्य बाह्यतः" इत्यादि श्रुतिवाक्यों की छाप थी। वे पुरुषाऽद्वैतवादी थे, परन्तु "पुण्यः पुण्येन, पापः पापेन कर्मणा" इत्यादि वचनों से पुरुषाऽद्वैतवाद में कुछ शंकित भी थे ।
___ भगवान् महावीर ने वैदिक पदों के समन्वय द्वारा द्वैत की सिद्धि करके इनकी मानसिक शंकाओं को दूर कर पावामध्यमा के महासेन वन में दीक्षा दी और अपना दूसरा गणधर बनाया ।
___ अग्निभूति ने छयालीस वर्ष की अवस्था में श्रामण्य धारण किया, बारह वर्ष तक छद्मस्थावस्था में तपकर केवलज्ञान प्राप्त किया और सोलह वर्ष पर्यन्त केवली अवस्था में विचर कर श्रमण भगवान् की जीवित अवस्था में ही, उनके निर्वाण से करीब दो वर्ष पहले, गुणशील चैत्य में मासिक अनशन
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