________________
२१८
( १ ) इन्द्रभूति गौतम
भगवान् महावीर के सबसे बड़े शिष्य इन्द्रभूति गौतम थे । गृहस्थाश्रम में ये मगध देशान्तर्गत गोबर गाँव निवासी गौतमगोत्रीय ब्राह्मण वसुभूति के ज्येष्ठ पुत्र थे । इनकी माता का नाम पृथिवी था । आपका नाम यद्यपि इन्द्रभूति था पर ये अपने गोत्राभिधान 'गौतम' इस नाम से ही अधिक प्रसिद्ध
श्रमण भगवान् महावीर
I
इन्द्रभूति वैदिक धर्म के प्रखर विद्वान् और अध्यापक थे । " विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानुविनश्यति, न प्रेत्य संज्ञास्ति" इत्यादि श्रुति वाक्यों से इनके मन पर तत्कालीन भौतिकवाद का असर हो गया था परन्तु इससे विपरीत " स वै अयमात्मा ज्ञानमयः" इत्यादि आत्मसत्तासूचक वैदिक वचनों से आप नास्तिक होनेसे बचे हुए थे ।
उक्त द्विविध वेद वाक्यों के अस्तित्व से गौतम का हृदय यद्यपि आत्मास्तित्व के संबन्ध में शंकाशील रहता था परन्तु अपनी योग्यता के अनुरूप न समझ कर अथवा समाज-भय के वश ये अपने मनोगत संशय को किसी के आगे प्रकट नहीं करते थे ।
पावामध्यमा निवासी सोमिलार्य के आमंत्रण से उनके यज्ञोत्सव पर इन्द्रभूति अपने पाँच सौ छात्रों के साथ वहाँ आये हुए थे । उधर ऋजुवालुका के तटसे विहार कर भगवान् महावीर भी वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन पावामध्यमा के महासेन उद्यान में पधारे हुए थे ।
उद्यान में इन्द्रभूति वादी बनकर महावीर को पराजित करने के भाव से उनकी धर्मसभा में गये पर भगवान् ने उन्हीं वेदपदों का वास्तविक अर्थ समझा कर इन्द्रभूति के मानसिक संशय को दूर कर दिया और छात्रों के साथ उन्हें अपना शिष्य बना लिया ।
दीक्षा के समय इन्द्रभूति की अवस्था पचास वर्ष की थी। आपका शरीर सुन्दर और सुगठित था । प्रतिदिन सैकड़ों शिष्यों को आगमवाचना देने के अतिरिक्त भगवान् महावीर के श्रमणसंघ की व्यवस्था में भी प्रमुखता इन्हीं की थी और यह सब होते हुए भी ये बड़े तपस्वी और विनीत गुरुभक्त श्रमण थे ।
Jain Education International
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org