SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २११ तीर्थंकर-जीवन प्रतिदिन क्षीणता को प्राप्त होते हुए इस लोक में कृष्णपक्ष में चन्द्र की तरह जो मनुष्य अपना जीवन धार्मिक बनाकर धर्म में व्यतीत करेंगे उन्हींका जन्म सफल होगा । इस हानिशील दुष्षमा समय के अन्त में दुःप्रसह आचार्य, फल्गुश्री साध्वी, नागिल श्रावक और सत्यश्री श्राविका इन चार मनुष्यों का चतुर्विधसंघ शेष रहेगा । विमलवाहन राजा और सुमुख अमात्य ये दुष्षमाकालीन भारतवर्ष के अन्तिम राजा और अमात्य होंगे । दुषमा के अन्त में मनुष्य का शरीर दो हाथ भर और आयुष्य बीस वर्ष का होगा । दुष्षमा के अन्तिम दिन पूर्वाह्न में चारित्र-धर्म का, मध्याह्न में राजधर्म का और अपराह्न में अग्नि का विच्छेद होगा । यह इक्कीस हजार वर्ष का दुष्षमाकाल पूरा होकर इतने ही वर्षों का दुष्षम-दुष्षमा नामक छठा आरा लगेगा । तब धर्मनीति, राजनीति आदि के अभाव में लोक अनाथ होंगे। माता-पुत्रादि का व्यवहार लुप्त होगा और मनुष्यों में पशुवृत्तियाँ प्रचलित होंगी ।। दुष्यमदुष्यमा के प्रारंभ में ही प्रचण्ड आँधियाँ चलेंगी और प्रलयकारी मेघ बरसेंगे जिनसे भारतभूमि के मनुष्यों और पशुओं का अधिकांश नाश हो जायगा । अत्यल्पसंख्यक मनुष्य और पशु गंगा एवं सिन्धु के तटों पर पहाड़ी गुफाओं में रहेंगे और मांस मत्स्यों के आहार से जीवन निर्वाह करेंगे । अवसर्पिणी काल के दुष्षम-दुष्पमा विभाग के बाद उत्सर्पिणी का इसी नाम का प्रथम आरा लगेगा और इक्कीस हजार वर्ष तक भारत की वही दशा रहेगी जो छठे आरे में थी । उत्सर्पिणी का प्रथम आरा समाप्त होकर दूसरा लगेगा तब फिर शुभ समय का आरम्भ होगा। पहले पुष्कर-संवर्तक मेघ बरसेगा जिससे भूमि का ताप दूर होगा । फिर क्षीर मेघ बरसेगा जिससे धान्य की उत्पत्ति होगी । तीसरा घृत- मेघ बरसकर पदार्थो में चिकनाहट उत्पन्न करेगा । चौथा अमृत-मेघ बरसेगा तब नाना प्रकार के रस-वीर्यवाली ओषधियाँ उत्पन्न होंगी और अन्त में रसमेघ बरस कर पृथ्वी आदि में रस की उत्पत्ति करेगा । ये पाँचों ही मेघ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy