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श्रमण भगवान् महावीर गौतम ने पूछा-भगवन् ! अन्यतीथिक कहते हैं कि प्राण, भूत और सत्त्वनामधारी सर्वजीव एकान्त दुःख को भोगते हैं। क्या यह कथन सत्य है ? एकान्त दुःखवेदना के संबंध में
महावीर-नहीं, गौतम ! अन्यतीर्थिकों का उक्त कथन ठीक नहीं है। सिद्धान्त यह है कि कुछ जीव नित्य एकान्तदुःख को भोगते हैं और कभी कभी सुख को । कुछ जीव नित्य एकान्त-सुख का अनुभव करते हैं और कभी कभी दुःख का । तब कितने ही जीव सुख और दुःख को अनियमितता से भोगते हैं।
नारक जीव नित्य एकान्त-दुःख का अनुभव करते हैं और समय विशेष में वे सुख को भी पाते हैं । भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव एकान्त सुख का अनुभव करते हैं, पर समय विशेष में वे दुःख को भी भोगते हैं । पृथिवीकायिक आदि तिर्यञ्च गति के जीव और मनुष्य अनियमितता से सुख दुःख को भोगते हैं। कभी वे सुख विपाक को भोगते हैं और कभी दुःख विपाक को ।
इस वर्ष में अग्निभूति और वायुभूति नामक गणधरों ने राजगृह के गुणशील चैत्य में मासिक अनशनपूर्वक निर्वाण प्राप्त किया ।
इस वर्ष का वर्षावास भगवान् ने राजगृह में किया । ४२. बयालीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४७१-४७०)
___ वर्षा चातुर्मास्य के बाद भी भगवान् महीनों तक राजगृह में ठहरे । इस बीच उनके गणधर अव्यक्त, मण्डिक, मौर्यपुत्र और अकम्पित मासिक अनशनपूर्वक गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त हुए । दुष्षमदुष्षम काल का भारत और उसके मनुष्य
इन्द्रभूति गौतम ने पूछा- भगवन् ! अवसर्पिणी काल के दुष्यमदुष्षमा
१. भ० श० ६, उ० ९, प० २८५- २८६ ।
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