________________
२०५
तीर्थंकर-जीवन सुख अथवा दुःख के परिमाण के विषय में
गौतम ने पूछा-भगवन् ! अन्यतीर्थिक यह कहते हैं-इस राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सब के सुखों अथवा दुःखों को इकट्ठा करके बेर की गुठली, बाल, कलाय, जूं अथवा लीख जितने परिमाण में भी बताने में कोई समर्थ नहीं है । क्या अन्यतीर्थिकों का यह कथन यथार्थ है ?
महावीर—गौतम ! अन्यतीर्थिकों का उक्त कथन ठीक नहीं है। इस विषय में मेरा सिद्धान्त यह है-~राजगृह के तो क्या संसार भर के सब जीवों के सुख-दुःखों को इकट्ठा करके लिक्षापरिमाण भी दिखाने को कोई समर्थ नहीं है । गौतम ! सम्पूर्ण लोक के सुख-दुःखों को इकट्ठा करने पर भी उनका पिण्ड लिक्षा के बराबर भी क्यों नहीं होता, इसको मैं एक दृष्टान्त से समझाऊँगा । मान लो कि कोई एक महान् सामर्थ्यवान् देव है । वह सुगन्धी से भरा हुआ एक डिब्बा लेकर लक्ष-योजन परिमाणवाले संपूर्ण जम्बूद्वीप के ऊपर पलकमात्र में इक्कीस बार चक्कर काटता हुआ डिब्बे में की तमाम सुगंधी सारे जम्बूद्वीप में बीखेर दे । तब वे सुगंधीपुद्गल संपूर्ण जम्बूद्वीप का स्पर्श करेंगे या नहीं ?
___गौतम-हाँ, भगवन् ! वे सूक्ष्म सुगंधी परमाणु संपूर्ण जंबूद्वीप में फैलकर उसका स्पर्श कर लेंगे ।
महावीर-गौतम ! अगर उन सूक्ष्म सुगन्धी परमाणुओं को कोई फिर इकट्ठा करना चाहे तो क्या वह एक लिक्षा परिमाण भी इकट्ठा करके दिखा सकता है ?
___गौतम-नहीं भगवन् ! उन सूक्ष्म पुद्गलों को फिर इकट्ठा कर दिखाना अशक्य है ।
महावीर-इसी प्रकार लोकगत सर्वजीवों के सम्पूर्ण सुख-दुःखों को इकट्ठा करके लिक्षा- परिमाण भी दिखाने को कोई समर्थ नहीं है ।
१. भ० श० ६, उ० ९. प० २८४-२८५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org