SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०३ तीर्थंकर-जीवन नहीं किया । इसका उचित आलोचना-प्रायश्चित्त लेकर तुझे शुद्ध होना चाहिये । महावीर की आज्ञा पाकर गौतम महाशतक के यहाँ गये और भगवान् का संदेश उसे दिया । महाशतक ने भी भगवान् की आज्ञा सिर आँखों पर चढ़ाई और अपनी भूल का प्रायश्चित्त किया । उष्ण जलहूद के विषय में प्रश्न एक समय वैभारगिरि के नीचे उष्ण जलहूद के विषय में इन्द्रभूति गौतम ने पूछा-भगवन् ! अन्यतीर्थिक यह कहते हैं कि राजगृह नगर के बाहर वैभार पर्वत के नीचे एक बड़ा भारी जलहद है जिसकी लंबाई और चौड़ाई अनेक योजन परिमित है। उसके किनारे विविध जाति के वृक्षों की घटाओं से सुशोभित हैं । उसमें से बड़े बड़े बादल तैयार होते और बरसते हैं । इसके अतिरिक्त उसमें जो अधिक जलसमूह होता है वही उष्ण जलस्रोतों के रूप में निरन्तर बहता रहता है । भगवन् ! क्या अन्यतीर्थिकों का यह कथन सत्य है ? महावीर-गौतम ! अन्यतीर्थिकों का यह कथन सत्य नहीं है । इस विषय में मेरा मत यह है कि राजगृह के बाहर वैभार पर्वत के पास अत्यन्त उष्ण स्थान के पास से निकलनेवाला 'महातपस्तीरप्रभव' नामक जलस्रोत है, जिसकी लंबाई-चौड़ाई पाँच पाँच सौ धनुष्य परिमाण है । इसके किनारों पर अनेक जाति के वृक्ष लगे हुए हैं जिनसे इसकी शोभा दर्शनीय हो गई है । इस उष्ण जलस्रोत में उष्णयोनि के जीव उत्पन्न होते और मरते हैं, तथा उष्ण स्वभाव के जल-पुदगल भी उष्णजल के रूप में इसमें आते और निकलते रहते हैं । यही कारण है कि स्रोत में से नित्य और सतत उष्णजल का प्रवाह बाहर बहता रहता है। महातपस्तीरप्रभव जलस्रोत की यही हकीकत है और यही इसका रहस्य है । गौतम-भगवन् ! आपका कथन सत्य है। महातपस्तीरप्रभव जलस्रोत का रहस्य यही हो सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy