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________________ २०२ श्रमण भगवान् महावीर और कर्मों के क्षयोपशम से महाशतक को अवधिज्ञान प्रकट हो गया था जिससे वह आनन्द की ही तरह ऊपर, नीचे और तिर्यग् लोक में दूर दूर तक जानता तथा देखता था । उस समय उसकी स्त्री रेवती मदिरा से मतवाली होकर महाशतक के पास गई और विकृत चेष्टाओं तथा असभ्य वचनों से उसका ध्यान भंग करने लगी। दो बार तो महाशतक ने उसकी बातें सुनी-अनसुनी कर दी । पर जब वह बार बार विरुद्ध बातों और अभद्र चेष्टाओं से उसे सताती ही गई तब वह अपने क्रोध को दबा न सका । अवधिज्ञान से उसकी भविष्य की दशा को जान कर बोला-'अये मृत्युप्रार्थिनी रेवति ! इतनी उन्मत्त क्यों हो रही है ? सात दिन के भीतर ही अलस रोग से पीड़ित हो असमाधिपूर्वक मर कर तू नरक गति को प्राप्त होनेवाली है, इस बात की भी जरा चिन्ता महाशतक के कटुवचनों से रेवती भयभीत होकर सोचने लगीसचमुच आज महाशतक मेरे ऊपर रुष्ट हुए हैं । न जाने अब मुझे किस बुरी तरह मारेंगे । वह धीरे धीरे वहाँ से हट कर अपने स्थान पर चली गई । महाशतक के कथनानुसार ही रेवती को अलस रोग हुआ और सात दिन के भीतर उसका देहान्त हो गया । - रेवती के प्रति किये गये कटुभाषण के संबन्ध में महाशतक को चेतावनी देने के लिये भगवान् महावीर ने इन्द्रभूति गौतम को बुला कर कहा-~गौतम ! यहाँ मेरा अन्तेवासी महाशतक श्रमणोपासक अपनी पौषधशाला में अन्तिम अनशन कर काल निर्गमन कर रहा है। अपनी स्त्री रेवती द्वारा मोहजनक वचनों से सताये जाने पर उसने क्रोधवश हो रेवती की कठोर वचनों से तर्जना की है । इसलिये गौतम ! महाशतक को जाकर कह कि अन्तिम अनशन कर समभाव में रहे हुए श्रमणोपासक को ऐसा करना उचित नहीं । यथार्थ-सत्य होने पर भी अप्रिय कठोर वचन बोलना अनशनधारी श्रमणोपासक का कर्तव्य नहीं । देवानुप्रिय ! रेवती को अप्रिय वचन कह कर तूने अच्छा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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