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तीर्थंकर-जीवन
२०१ १५. चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा इनमें शीघ्रगति कौन है ? १६. चाँद की चाँदनी का लक्षण क्या है ? १७. चन्द्रादि ग्रहों का च्यवन और उपपात कैसे होता है ? १८. भूतल से चन्द्र आदि ग्रह कितने ऊँचे हैं ? १९. चन्द्र, सूर्यादि कितने हैं ? २०. चन्द्र, सूर्यादि क्या हैं ?
गौतम के उक्त प्रश्नों के उत्तर भगवान् महावीर ने इतने विस्तृत रूप से दिये हैं कि उनसे सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति जैसे प्राचीन पद्धति के ज्योतिषविज्ञान के मौलिक ग्रन्थ बन गये हैं । उक्त प्रश्नों के उत्तरों से हम इस ग्रन्थ को जटिल बनाना उचित नहीं समझते ।
__ भगवान् ने इस साल का वर्षावास मिथिला में ही बिताया । ४०. चालीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४७३-४७२)
___ चातुर्मास्य के बाद भगवान् विदेह देश में ही विचरे । अनेक श्रद्धालुओं को निर्ग्रन्थ मार्ग में दीक्षित किया और अनेक गृहस्थों को श्रमणोपासक बनाया । वर्षाकाल निकट आने पर आप फिर मिथिला पधारे और वर्षावास मिथिला में ही किया । ४१. इकतालीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४७२-४७१)
__ चातुर्मास्य की समाप्ति पर भगवान् ने मिथिला से मगध की तरफ विहार कर दिया और क्रमशः राजगृह पधार कर गुणशील चैत्य में वास किया ।
महाशतक को चेतावनी
उन दिनों राजगृहनिवासी महाशतक श्रमणोपासक गृहस्थ-धर्म की अन्तिम आराधना करके अनशन किए हुए था । अनशन के बाद शुभाध्यवसाय
१. सूर्यप्रज्ञप्ति प० १-९ ।
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