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श्रमण भगवान् महावीर ३९. उनचालीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४७४-४७३)
चातुर्मास्य के अनन्तर नालन्दा से विचरते हुए भगवान् विदेह जनपद में पधारे । देश के अन्यान्य ग्राम नगरों में प्रवचन का उपदेश करते हुए आप मिथिला पधारे । यहाँ पर राजा जितशत्रु ने आपका बड़ा आदर किया ।
समवसरण मिथिला के बाहर माणिभद्र चैत्य में हुआ । राजा जितशत्रु और रानी धारणी प्रमुख राजपरिवार तथा भाविक नगरजनों से चैत्य का मैदान विशाल धर्मसभा के रूप में परिवर्तित हो गया । आपने निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश किया । सभाजन संतुष्ट होकर अपने अपने स्थानों पर चले गए ।
सभा-विसर्जन के बाद अनगार इन्द्रभूति ने वन्दन पुरस्सर ज्योतिषशास्त्र से संबंधित अनेक प्रश्न किये जिनमें बीस प्रश्न मुख्य थे ।
गौतम ने पूछा१. सूर्य प्रतिवर्ष कितने मण्डलों का भ्रमण करता है ? २. सूर्य तिर्यग्भ्रमण कैसे करता है ? ३. सूर्य तथा चन्द्र कितने क्षेत्र को प्रकाशित करते हैं ? ४. प्रकाश का अवस्थान कैसा है ? ५. सूर्य का प्रकाश कहाँ रुकता है ? ६. ओजस् (प्रकाश) की स्थिति कितने काल की है ? ७. कौन से पुदगल सूर्य के प्रकाश का स्पर्श करते हैं ? ८. सूर्योदय की स्थिति कैसी है ? ९. पौरुषी छाया का क्या परिमाण है ? १०. योग किसे कहते हैं ? ११. संवत्सरों का प्रारंभ कहाँ से होता है ? १२. संवत्सर कितने कहे हैं ? १३. चन्द्रमा की वृद्धि-हानि क्यों दीखती है ? १४. किस समय चाँद की चाँदनी बढ़ती है ?
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