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तीर्थंकर-जीवन के समय ईर्यापथिकी नहीं करता' ।
निर्ग्रन्थों के देवभव के भोग सुखों के विषय में
गौतम ने पूछा--भगवन् ! अन्यतीर्थिक कहते हैं-निर्ग्रन्थ कालधर्म प्राप्त होकर देवलोक में देव होता है तब वह अपनी दिव्य आत्मा से वहाँ के अन्य देव-देवियों के साथ अथवा अपनी देवियों के साथ विषय भोग नहीं करता किन्तु वह अपनी ही आत्मा में से अन्य वैक्रिय रूप बना बनाकर उनके साथ विषय सुख भोगता है । क्या भगवन् ! अन्यतीर्थिकों का यह कथन सत्य है ?
महावीर-गौतम ! अन्यतीर्थिक इस विषय में जो कहते हैं वह सत्य नहीं है। सच तो यह है कि निर्ग्रन्थ कालधर्म प्राप्त होने के बाद किसी भी ऐसे देवलोक में देव होता है जो महाऋद्धि और प्रभावसंपन्न हो और जहाँ के देवों की आयुष्य-स्थिति बहुत लम्बी हो । वहाँ देवरूप से उत्पन्न निर्ग्रन्थ का जीव महातेजस्वी और ऋद्धिमान् देव होता है । वह वहाँ पर दूसरे देवों, उनकी देवियों और अपनी देवियों को अनुकूल करके उनसे विषयवासना पूर्ण करता है और एक जीव एक समय में एक ही वेद का अनुभव करता हैस्त्री-वेद का अथवा पुरुष-वेद का । स्त्री-वेद के अनुभवकाल में पुरुष-वेद का अनुभव नहीं करता और पुरुष-वेद के अनुभवकाल में स्त्री-वेद का ।
पुरुष--वेद के उदयकाल में पुरुष स्त्री की और स्त्री-वेद के उदयकाल में स्त्री पुरुष की प्रार्थना करती है । इस प्रकार अपने अपने वेदोदयकाल में स्त्री पुरुष एक दूसरे की अभिलाषा करते हैं ।
___ गणधर अचलभ्राता और मेतार्य ने गुणशील चैत्य में मासिक अनशन कर निर्वाण प्राप्त किया ।
इस साल का वर्षावास भगवान् ने नालन्दा में किया ।
१. भ० श० १, उ० १०, प० १०६ । २. भ० श० २, उ० ५, प० १३१-१३२ ।
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