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श्रमण भगवान् महावीर अन्यतीर्थिकों की मान्यताओं के संबन्ध में गौतम के प्रश्न(१) क्रियाकाल और निष्ठाकाल के विषय में
गौतम ने पूछा-"भगवन ! अन्यतीर्थिक कहते हैं-चलमान चलित नहीं होता, इसी तरह उदीर्यमाण उदीरित, वेद्यमान वेदित, हीयमान हीन, छिद्यमान छिन्न, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण मृत और निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण नहीं होता । (२) परमाणुओं के संयोगवियोग के संबन्ध में
"अन्यतीर्थिक कहते हैं-दो परमाणु पुद्गल एकत्र नहीं मिलते, क्योंकि दो परमाणु पुद्गलों में स्निग्धता नहीं होती । तीन परमाणु एकत्र मिल सकते हैं, क्योंकि तीन परमाणुओं में स्निग्धता होती है । इन एकत्र मिले हुए तीन परमाणुओं का विश्लेषण करने पर दो अथवा तीन टुकड़े होंगे। दो टुकड़े होने पर डेढ़ डेढ़ परमाणु का एक एक टुकड़ा होगा और तीन टुकड़े होने पर एक एक परमाणु का एक एक टुकड़ा होगा । इसी प्रकार चार तथा पाँच आदि परमाणु-पुद्गल एकत्र मिलते हैं और इस प्रकार मिले हुए परमाणु समुदाय ही दुःख का रूप धारण करते हैं । वह दुःख भी शाश्वत है और उसमें सदा हानि वृद्धि होती रहती है । (३) भाषा के भाषात्व के संबन्ध में ।
"अन्यतीर्थिक कहते हैं-बोली जानेवाली अथवा बोली गई भाषा 'भाषा' कहलाती है, पर बोली जाती भाषा 'भाषा' नहीं कहलाती । और भाषा 'भाषक' की नहीं किन्तु 'अभाषक' की कहलाती है । (४) क्रिया की दुःखात्मता के विषय में
"अन्यतीर्थिक कहते हैं—पहले क्रिया दुःख रूप होती है और पीछे भी वह दःख रूप होती है, पर क्रिया-काल में क्रिया दःखात्मक नहीं होती क्योंकि 'करण' से नहीं किन्तु 'अकरण' से ही क्रिया दुःखात्मक होती है, यह कहना चाहिए ।
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