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तीर्थंकर-जीवन
१९५ का कम । इसके विपरीत जो पुरुष अग्नि को बुझाता है वह अग्निकाय का अधिक आरम्भ करता है, परन्तु पृथिवीकाय, अप्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय इन सब का अल्प आरम्भ करता है। इसलिए जो अग्नि को प्रज्वलित करता है वह अधिक आरम्भ करता है और उसको शान्त करनेवाला अल्प' । (३) अचित्त पुद्गलों के प्रकाश विषय में
कालोदायी-भगवन् ! अचित्त पुद्गल प्रकाश अथवा उद्योत करते हैं ? यदि करते हैं तो अचित्त पुद्गल किस प्रकार प्रकाशित होते होंगे ?
महावीर-कालोदायिन् ! अचित्त पुद्गल प्रकाश करते हैं । कोई तेजोलेश्याधारी अनगार जब तेजोलेश्या छोड़ता है उस समय उसकी तेजोलेश्या के कुछ पुद्गल दूर जाकर गिरते हैं, कुछ नजदीक । दूरनिकट गिरे हुए वे पुद्गल प्रकाश को फैलते हैं । हे कालोदायिन् ! इस प्रकार अचित्त पुद्गल प्रकाशित होते हैं ।
कालोदायी ने भगवान् का यह विवेचन स्वीकार किया ।
छ?, अट्ठमादि तप करके कालोदायी ने अन्त में अनशनपूर्वक देह छोड़कर निर्वाण को प्राप्त किया ।
इस वर्ष गुणशील चैत्य में गणधर प्रभास ने एक मास का अनशन करके निर्वाण प्राप्त किया और अनेक अनगार विपुलाचल पर अनशनपूर्वक निर्वाण को प्राप्त हुए । अनेक नयी दीक्षायें भी हुईं ।
यह वर्षावास भगवान् ने राजगृह में किया । ३८. अड़तीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४७५-४७४)
इस वर्ष भगवान् ने मगधभूमि में ही विहार कर निर्ग्रन्थ प्रवचन का प्रचार किया । चातुर्मास्य निकट आने पर भगवान् राजगृह पधारे और गुणशील में समवसरण हुआ ।
१. भ० श० ७, उ० १०, प० ३२६-३२७ । २. भ० श० ७, उ० १०, प० ३२७ ।
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