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श्रमण भगवान् महावीर यदि कोई उसे बीच में से उड़ा ले तो वह हमारा जाता है, गृहपति का नहीं । इस कारण हम किसी भी हेतु-युक्ति से अदत्तग्राही सिद्ध नहीं होते । परन्त हे आर्यो ! तुम खुद ही त्रिविध त्रिविध से असंयत, अविरत और बाल सिद्ध होते हो ।
अन्यतीर्थिक-क्यों ? हम असंयत, अविरत और बाल किसलिए कहलायेंगे ?
स्थविर-इसलिए कि तुम अदत्त लेते हो । अन्यतीर्थिक-हम किस हेतु से अदत्तग्राही सिद्ध होंगे ?
स्थविर—आर्यो ! तुम्हारे मत से दीयमान अदत्त, प्रतिगृह्यमाण अप्रतिगृहीत और निसृज्यमान अनिसृष्ट है । इस कारण तुम अदत्त लेनेवाले है । त्रिविध असंयत, अविरत और बाल हो ।
अन्यतीर्थिक-आर्यो ! तुम त्रिविध असंयत, अविरत और बाल हो ।
स्थविर–क्यों ? किस कारण से हम असंयत, अविरत और बाल कहे जायेंगे ?
अन्यतीर्थिक–आर्यो ! तुम चलते हुए पृथ्वीकाय पर आक्रमण करते हो, उसपर प्रहार करते हो, उसको घिसते हो, दूसरे से मिलाते हो, उसे इकट्ठा करते और छूते हो, उसको सताते हो और उसके जीवों का नाश करते हो । इस प्रकार पृथिवी के जीवों पर आक्रमणादि क्रियाएँ करते हुए तुम असंयत, अविरत और बाल साबित होते हो ।
__ स्थविर-आर्यो ! चलते हुए हम पृथिवी पर आक्रमण आदि नहीं करते । शरीर की चिन्ता के लिए, बीमार की सेवा के निमित्त अथवा विहारचर्या के वश जब हमें पृथिवी पर चलना पड़ता है तब भी विवेकपूर्वक धीरे-धीरे पादक्रम से चलते हैं । इसलिये न हम पृथिवी का आक्रमण करते हैं और न उसके जीवों का विनाश ही । परन्तु आर्यो ! तुम खुद ही इस प्रकार पृथिवी के जीवों पर आक्रमण और उपद्रव करते हुए असंयत, अविरत और एकान्त बाल बन रहे हो ।
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