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________________ १९१ तीर्थंकर-जीवन अन्यतीर्थिकों के आक्षेपात्मक प्रश्न गुणशील चैत्य में अनेक अन्यतीर्थिक बसते थे । भगवान् की धर्मसभा विसर्जित होने पर अनेक अन्यतीर्थिक भगवान् के आसपास बैठे हुए स्थविरों के पास आकर बोले-आर्यो ! तुम त्रिविध त्रिविध से असंयत और बाल हो । अन्यतीर्थिकों का आक्षेप सुन कर स्थविरों ने कहा--आर्यो ! किस कारण से हम असंयत, अविरत और बाल हो सकते हैं ? __ अन्यतीर्थिक-आर्यो ! तुम अदत्त ग्रहण करते हो, अदत्त खाते हो, अदत्त चखते हो । इस कारण से तुम असंयत, अविरत और बाल हो । स्थविर—आर्यो ! हम किस प्रकार अदत्त लेते, खाते अथवा चाखते हैं ? __ अन्यतीर्थिक–आर्यो ! तुम्हारे मत में दीयमान अदत्त है, प्रतिगृह्यमाण अप्रतिगृहीत है और निसृज्यमान अनिसृष्ट है क्योंकि तुम्हारे मत में दीयमान पदार्थ को दाता के हाथ से छूटने के बाद तुम्हारे पात्र में पड़ने से पहले यदि कोई बीच में से ले ले तो वह पदार्थ गृहस्थ का गया हुआ माना जाता है, तुम्हारा नहीं । इससे यह सिद्ध हुआ कि तुम्हारे पात्र में जो पदार्थ पड़ता है वह अदत्त है क्योंकि जो पदार्थ दानकाल में तुम्हारा नहीं हुआ वह बाद में भी तुम्हारा नहीं हो सकता और इस प्रकार अदत्त को लेते, खाते और चखते हुए तुम असंयत, अविरत और बाल ही सिद्ध होते हो । स्थविर—आर्यो ! हम अदत्त नहीं लेते, खाते और चखते किन्तु हम दत्त लेते, खाते और चखते हैं और इस प्रकार दिया हुआ ग्रहण करते और खाते हुए हम त्रिविध त्रिविध से संयत, विरत और पण्डित सिद्ध होते हैं । अन्यतीर्थिक-आर्यो ! किस प्रकार तुम दत्तग्राही सिद्ध होते हो, सो हमें समझाओ। स्थविर–आर्यो ! हमारे मत में दीयमान दत्त, प्रतिगृह्यमाण प्रतिगृहीत और निसृज्यमान निसृष्ट माना जाता है । गृहपति के हाथ से छूटने के अनन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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