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तीर्थकर-जीवन निर्ग्रन्थ श्रमण धर्म की प्रव्रज्या अंगीकार कर ली ।
अनगार सुदर्शन ने क्रमश: चौदह पूर्वश्रुत का अध्ययन किया और बारह वर्ष तक श्रामण्य पाल कर निर्वाण पद पाया' ।
श्रमणोपासक आनन्द का अवधिज्ञान
___भगवान् की आज्ञा ले गणधर गौतम भिक्षाचर्या करने वाणियग्राम गये और पर्याप्त आहार लेकर दूतिपलास को लौट रहे थे कि बीच में कोल्लाग संनिवेश के पास उन्होंने जनप्रवाद सुना-देवानुप्रियो ! आजकल कोल्लाग संनिवेश में श्रमणोपासक आनन्द, जो भगवान् महावीर के गृहस्थ शिष्य हैं, मारणान्तिक अनशन स्वीकार कर दर्भ की पथारी पर सो रहे हैं ।
जनप्रवाद सुन कर गौतम ने सोचा-श्रमणोपासक आनन्द अनशन किए हुए आखिरी स्थिति में हैं । मैं उन से मिलता जाऊँ । वे कोल्लाग संनिवेश में आनन्द की पौषधशाला में गये । गौतम को देखते ही आनन्द ने उन्हें नमस्कार किया और बोले-भगवन् ! मैं अनशन के कारण अतिशय कमजोर हूँ। आप जरा इधर पधारिये ताकि आपके चरणों में नतमस्तक होकर वन्दन कर लूँ । गौतम निकट गये और आनन्द ने विधिपूर्वक वन्दन किया ।
प्रासंगिक वार्तालाप के अनन्तर आनन्द ने पूछा-भगवन् ! घर में रह कर गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए गृहस्थ श्रावक को अवधिज्ञान उत्पन्न हो सकता है ?
गौतम-हाँ आनन्द ! गृहस्थ धर्म का आराधन करते हुए श्रमणोपासक को अवधिज्ञान उत्पन्न हो सकता है ।।
आनन्द-भगवन् ! गृहस्थ धर्म का आराधन करते हुए मुझे भी अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है जिससे मैं पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-लवण समुद्र में पाँच सौ योजन, उत्तर में क्षुद्रहिमवद्वर्षधर, ऊपर सौधर्मकल्प और नीचे लोलच्चुअ नामक नरकावास तक रूपी पदार्थों को जानता तथा देखता हूँ ।
१. भ० श० ११, उ० ११, प० ५३२-५४९ ।
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