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________________ १८६ श्रमण भगवान् महावीर भगवान् के वाणिय ग्राम के बाहर दूतिपलास चैत्य में पधारते ही नगर में समाचार पहुँच गये और नगरनिवासियों का समुदाय दूतिपलास में इकट्ठा होने लगा । हजारों मनुष्य आये, दर्शन वन्दन किया और धर्मोपदेश सुनकर अपने-अपने घर लौट गये । सभा विसर्जित होने के बाद श्रेष्ठी सुदर्शन ने भगवान् से कालविषयक अनेक प्रश्न पूछे । काल कितने प्रकार का होता है ? प्रमाण-काल कितने प्रकार का होता है ? प्रमाण-काल, यथायुष्क-निर्वृत्तिकाल, मरणकाल और अद्धाकाल का क्या स्वरूप है ? पल्योपम और सागरोपमों की क्या आवश्यकता है ? पल्योपम तथा सागरोपम काल का भी क्षय होता है कि नहीं ? इत्यादि सुदर्शन ने अनेक प्रश्न किये जिनके भगवान् ने स्पष्ट उत्तर दिए । ___ अन्त में भगवान् ने सुदर्शन के पूर्वभवों का निरूपण करते हुए कहा-सुदर्शन ! प्रपूर्व भव में तेरा जीव महाबल नामक राजकुमार था । महाबल ने गृहस्थाश्रम का त्याग कर श्रमण धर्म की दीक्षा ली और अरसे तक श्रामण्य पालने के उपरान्त आयुष्य पूर्ण कर ब्रह्मदेवलोक में दस सागरोपम की आयुष्यस्थितिवाला देव हुआ । वही महाबल का जीव ब्रह्मदेवलोक की आयुष्य स्थिति पूरी कर मनुष्यलोक में आकर तू सुदर्शन श्रेष्ठी हुआ है। प्रपूर्व भव में तेरे जीव ने जो श्रमण धर्म का आराधन किया था उसी के संस्कारवश इस जन्म में भी तू स्थविरों के मुख से धर्म सुनता और उसपर श्रद्धा करता है । ___ भगवान् के मुख से अपने पूर्व भव का वृत्तान्त सुनते ही सुदर्शन को जातिस्मरणज्ञान हुआ । इससे वह स्वयं अपने पूर्व भव का वृत्तान्त जानने लगा । जब सुदर्शन ने अपना पूर्वभव देखा तब उसके नेत्र हर्षा श्रुओं से भर गये, हृदयगत वैराग्य द्विगुणित हो गया । वह भगवान् को वन्दन कर बोलासत्य है भगवन् ! आपका कथन यथार्थ है । श्रेष्ठी सुदर्शन ने उसी समवसरण में भगवान् महावीर के हाथ से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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