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तीर्थंकर-जीवन रुचि लाना चाहिये ।
इसके बाद निर्ग्रन्थ उदय ने चातुर्याम-धर्म परम्परा से निकल कर पाञ्चमहाव्रतिक धर्म मार्ग स्वीकार करने की अपनी इच्छा व्यक्त की और गौतम उनका अनुमोदन करते हुए अपने साथ उन्हें भगवान् के पास ले गये ।
भगवान् महावीर को विधिपूर्वक वन्दन नमस्कार कर निर्ग्रन्थ उदय ने कहा--भगवन् ! मैं आपके समीप चातुर्याम-धर्म से पाञ्चमहाव्रतिक धर्म में आना चाहता हूँ ।
महावीर ने कहा-देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसे सुख हो वैसे करो । इस काम में प्रतिबन्ध या प्रमाद करना योग्य नहीं ।
इसके बाद निर्ग्रन्थ उदय महावीर-प्ररूपित पाञ्चमहाव्रतिक सप्रतिक्रमण धर्म का स्वीकार कर महावीर के श्रमणसंघ में सम्मिलित हो गये ।
इस वर्ष जालि, मयालि आदि अनेक अनगारों ने विपुलाचल पर अनशन कर देह छोड़ा ।
वर्षा चातुर्मास्य नालन्दा में किया । ३५. पैंतीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४७७-४७६)
वर्षा ऋतु की समाप्ति होते ही भगवान् ने नालन्दा से विहार किया और प्रत्येक ग्राम तथा नगर में धर्म का प्रचार करते हुए आप विदेह की राजधानी के निकटस्थ वाणीयग्राम पधारे । सुदर्शन श्रेष्ठी की प्रव्रज्या
वाणियग्राम गंडकी नदी के तट पर बसा हुआ एक व्यापारिक केन्द्र था । यहाँ बड़े-बड़े व्यापारियों की कोठियाँ और माल के गोदाम बने हुए थे । इस ग्राम में अनेक धनाढ्य जैन गृहस्थ रहते थे जिनमें एक का नाम सुदर्शन था ।
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१. सूत्रकृताङ्ग श्रुतस्कन्ध २, नालंदीयाध्ययन ७, ५० ४०६--४२५ ।
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