________________
१७८
श्रमण भगवान् महावीर हो सकती हैं, अन्यत्र कहीं नहीं ।
___ कालोदायी-भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय में जीवों के दुष्ट-विपाक पाप कर्म किये जाते हैं ?
महावीर-नहीं कालोदायिन् ! ऐसा नहीं होता ।।
कालोदायी-भगवन् ! इस जीवास्तिकाय में दुष्ट-विपाक पाप कर्म किये जाते हैं ?
महावीर-हाँ कालोदायिन् ! किसी भी प्रकार के कर्म जीवास्तिकाय में ही किये जाते हैं ।
पञ्चास्तिकाय विषयक प्रश्नों का सविस्तर उत्तर दे कर भगवान् ने कालोदायी के संशय को दूर किया । फलस्वरूप कालोदायी का चित्त निर्ग्रन्थ प्रवचन सुनने को उत्कण्ठित हुआ । भगवान् को वन्दन कर वह बोलाभगवन् ! मैं विशेष प्रकार से आपका प्रवचन सुनना चाहता हूँ।
भगवान् ने कालोदायी को लक्ष्य कर के निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश दिया जिसे सुन कर वह आप के पास निर्ग्रन्थ मार्ग में दीक्षित हो गया ।
कालोदायी अनगार क्रमशः निर्ग्रन्थ प्रवचन के एकादशाङ्ग सूत्रों का अध्ययन कर प्रवचन के रहस्य के ज्ञाता हुए' ।।
इन्द्रभूति गौतम और पार्खापत्य उदकपेढाल का संवाद
राजगृह नगर से ईशान दिशा में धनवानों के सैकड़ों प्रासादों से सुशोभित नालन्दा नामक एक समृद्ध उपनगर था । यहाँ 'लेव' नामक एक धनाढ्य गृहस्थ रहता था जो निर्ग्रन्थ प्रवचन का अनुयायी और जैन श्रमणों का परम भक्त था । नालंदा के उत्तर-पूर्व दिशा भाग में उक्त लेव श्रमणोपासक की 'शेषद्रविका' नाम की उदकशाला और उसके पास ही 'हस्तियाम' नामक उद्यान था ।
१. भ० श० ७, उ० १०, पृ० ३२३-३२४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org