SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७७ तीर्थंकर-जीवन तम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र धर्मास्तिकाय आदि पाँच अस्तिकायों की प्ररूपणा करते हैं। इनमें से चार को वे 'अजीवकाय' कहते हैं और एक को 'जीवकाय' तथा चार को 'अरूपिकाय' कहते हैं और एक को 'रूपिकाय' । इस विषय में क्या समझना चाहिये, गौतम ? इस अस्तिकाय संबन्धी प्ररूपणा का रहस्य क्या है, गौतम ? ___ गौतम-देवानुप्रियो ! हम 'अस्तित्व' में नास्तित्व नहीं कहते और 'नास्तित्व' में अस्तित्व नहीं कहते । हम अस्ति को अस्ति और नास्ति को नास्ति कहते हैं । हे देवानुप्रियो ! इस विषय में तुम स्वयं विचार करो जिससे कि इसका रहस्य समझ सको । अन्यतीर्थिकों के प्रश्न का रहस्यपूर्ण उत्तर देकर गौतम महावीर के पास चले गये, पर कालोदायी गौतम के उत्तर का रहस्य नहीं समझ पाया । परिणामस्वरूप वह स्वयं गौतम के पीछे पीछे भगवान् के पास पहुँचा । महावीर उस समय सभा में धर्मदेशना कर रहे थे । प्रसंग आते ही उन्होंने कालोदायी को संबोधन कर के कहा--कालोदायिन् ! तुम्हारी मण्डली में मेरे पञ्चास्तिकायनिरूपण की चर्चा चली ? कालोदायी-जी हाँ, आप पञ्चास्तिकाय की प्ररूपणा करते हैं यह बात हम ने जब से सुनी है तब से प्रसंगवश इस पर चर्चा हुआ करती है । __ महावीर-कालोदायिन् ! यह बात सत्य है कि मैं पञ्चास्तिकाय की प्ररूपणा करता हूँ। यह भी सत्य है कि चार अस्तिकायों को 'अजीवकाय' और एक को 'जीवकाय' तथा चार को 'अरूपिकाय' और एक को 'रूपिकाय' मानता हूँ। कालोदायी---भगवन् ! आपके माने हुए इन धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय अथवा जीवास्तिकाय पर कोई सो, बैठ या खड़ा रह सकता है ? महावीर—यह नहीं हो सकता कालोदायिन् ! इन धर्मास्तिकायादि अरूपिकाय पर सोना-बैठना या चलना-फिरना नहीं हो सकता । ये सब क्रियाएँ केवल एक पुद्गलास्तिकाय पर, जो कि रूपी और अजीवकाय है, श्रमण. १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy