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________________ १७६ मद्दुक ! तूने जो कहा है वह ठीक, उचित और यौक्तिक है । भगवान् के मुख से अपनी प्रशंसा सुन कर मद्दुक बहुत संतुष्ट हुआ और अन्यान्य धर्म- चर्चा कर वह अपने स्थान पर गया । महुक के चले जाने के बाद गौतम ने पूछा- भगवन् ! मद्दुक श्रमणोपासक आपके पास निर्ग्रन्थ- श्रामण्य धारण करने की योग्यता रखता है ? श्रमण भगवान् महावीर महावीर — गौतम ! मद्दुक हमारे पास प्रव्रज्या लेने में समर्थ नहीं है । मद्दुक गृहस्थाश्रम में रहकर देशविरति गृहस्थ धर्म की आराधना करेगा और अन्त में समाधिपूर्वक आयुष्य पूर्ण कर 'अरुणाभ' देव विमान में देव होगा और वहाँ से फिर मनुष्य जन्म पाकर संसार से मुक्त होगा' । इस साल का वर्षावास भगवान् ने राजगृह में किया । ३४. चौतीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४७९-४७८) हेमन्त ऋतु में राजगृह से महावीर ने बाहर के प्रदेश में विहार किया. और अनेक ग्राम-नगरों में निर्ग्रन्थ प्रवचन का प्रचार किया । ग्रीष्मकाल में भगवान् फिर राजगृह पधारे और गुणशील चैत्य में वास किया । अनगार इन्द्रभूति गौतम एक दिन राजगृह से भिक्षा लेकर भगवान् के पास गुणशील चैत्य में जा रहे थे, उस समय गुणशील चैत्य के मार्ग में कालोदायी, शैलोदायी प्रभृति अन्यतीर्थिक महावीर प्ररूपित पञ्चास्तिकायों की चर्चा कर रहे थे । गौतम को देख कर वे एक दूसरे को संबोधन कर बोलेदेवानुप्रियो ! हम धर्मास्तिकायादि के विषय में ही चर्चा कर रहे हैं । देखो ये श्रमण ज्ञातपुत्र के शिष्य गौतम भी आ गये । चलिये इस विषय में हम गौतम को पूछें । यह कह कर कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी प्रमुख अन्यतीर्थिक गौतम के पास पहुँचे और उन्हें ठहरा कर बोले—- हे गौतम ! Jain Education International १. भ० श० १८, उ० ७, प० ७५०-७५१ । For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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