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श्रमण भगवान् महावीर मद्दक महावीर का भक्त और जिन-प्रवचन का ज्ञाता गृहस्थ था । वह पैदल महावीर के समवसरण में जा रहा था । कालोदायी आदि अन्यतीर्थिक बैठे हुए महावीर के पञ्चास्तिकाय की चर्चा कर रहे थे कि मद्दुक वहाँ से होकर गुजरा । उसे देखते ही वे एक दूसरे को संबोधन करते हुए बोलेदेवानुप्रियो ! देखिये यह श्रमणोपासक जा रहा है, चलिए हम इस विषय में इसे पूछे । यह ज्ञातपुत्र के तत्त्वों का खासा अभ्यासी है । यह कहते हुए वे मदुक के पास गये और उसे रोककर बोले-हे मद्दुक ! तेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र पाँच अस्तिकायों का प्रतिपादन करते हैं और उनमें से किसीको जीव कहते हैं किसीको अजीव, किसीको रूपी बतलाते हैं और किसीको अरूपी, सो मद्दुक ! तेरा इस विषय में क्या अभिप्राय है ? क्या तू इन धर्मास्तिकायादि को जानता और देखता है ?
मढुक-इनके कार्यों से इनका अनुमान किया जा सकता है, बाकी धर्मास्तिकायादि पदार्थ अरूपी होने से जाने और देखे नहीं जा सकते ।
__ अन्यतीर्थिक-अये मद्दुक ! तू कैसा श्रमणोपासक है जो अपने धर्माचार्य के कहे हुए धर्मास्तिकायादि पदार्थों को जानता और देखता नहीं है ?
मदुक-आयुष्मानो ! हवा चलती है, यह बात सत्य है ? अन्यतीर्थिक-हाँ, हवा चलती है, पर इससे क्या ? मढुक-आयुष्मानो ! तुम हवा का रंग-रूप देखते हो ? अन्यतीर्थिक-नहीं, हवा का रूप देखा नहीं जाता ।
महुक-आयुष्मानो ! घ्राणेन्द्रिय के साथ स्पर्श करनेवाले गन्ध के परमाणु होते हैं ?
अन्यतीर्थिक-हाँ, घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध के परमाणु होते हैं ।
मढुक-आयुष्मानो ! तुम घ्राणेन्द्रिय का स्पर्श करनेवाले गन्ध के परमाणुओं का रूप देखते हो ?
अन्यतीर्थिक-नहीं, गन्ध के परमाणुओं का रूप देखा नहीं जाता ।
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