SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर - जीवन १७३ परवश होकर कभी केवली भी मृषा अथवा सत्यमृषा भाषा बोलते हैं, यह कैसे ? क्या केवली उक्त दो प्रकार की भाषा बोलते हैं ? महावीर — अन्यतीर्थिकों का उक्त कथन मिथ्या है । इस संबंध में मेरा कहना यह है कि न कभी केवली को यक्षावेश होता है और न वे मृषा अथवा सत्यमृषा भाषा बोलते हैं । केवली असावद्य और अपीडक सत्य अथवा असत्यामृषा भाषा बोलते हैं । राजगृह से भगवान् चम्पा की तरफ विचरे और पृष्ठचम्पा में पिठर, गालि आदि की दीक्षायें हुईं । वहाँ से भगवान् वापस गुणशील चैत्य में पधारे । उन दिनों गुणशील चैत्य के निकट कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी, उदक, नामोदक, अन्नपाल, शैवाल, शंखपाल, सुहस्ति और गाथापति आदि अनेक अन्यतीर्थिक रहते थे । श्रमणोपासक मद्दुक और कालोदायी की तत्त्वचर्चा एक समय वे श्रमण भगवान् महावीरप्ररूपित पञ्चास्तिकाय विषयक चर्चा करते हुए बोले— श्रमण ज्ञातपुत्र धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय इन पाँच 'अस्तिकायों' की प्ररूपणा करते हैं और इन पाँच में से 'जीवास्तिकाय' को वे 'जीवकाय' कहते हैं और शेष चारों को 'अजीवकाय', फिर वे धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय इन चार अस्तिकायों को 'अरूपिकाय' बताते हैं और एक पुद्गलास्तिकाय को 'रूपिकाय ।' आर्यो ! श्रमण ज्ञातपुत्र का यह निरूपण क्या सत्य है ? इस कथन में वास्तविकता क्या होनी चाहिये ? जिस समय अन्यतीर्थिक उक्त चर्चा कर रहे थे, उसके पहले ही भगवान् के आगमन के समाचार राजगृह में पहुँच चुके थे और भाविक नागरिकगण वन्दन नमस्कार और धर्मश्रवण के लिए गुणशील चैत्य की तरफ जा रहे थे । उन नागरिकगणों में एक मद्दुक नामक श्रमणोपासक भी था । Jain Education International १. भ० श० १८, उ० ७, प० ७४९ । For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy