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तीर्थकर-जीवन
१६९ महावीर-गांगेय ! नारक सान्तर भी निकलते हैं और निरन्तर भी ।
इसी तरह द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य तथा देव भी कभी सान्तर कभी निरन्तर अपने अपने स्थानों से निकल कर दसरे स्थानों में प्रवेश करते हैं । परन्तु पृथ्वीकायिकादि निरन्तर उत्पन्न होनेवाले एकेन्द्रिय जीव निरन्तर ही निकलते हैं ?
गांगेय-भगवन् ! 'प्रवेशन' कितने प्रकार के कहे हैं ?
महावीर-गांगेय ! प्रवेशन चार प्रकार के कहे हैं-१. नैरयिक प्रवेशन, २. तिर्यग्योनिकप्रवेशन, ३. मनुष्यप्रवेशन और ४. देवप्रवेशन' ।
गांगेय-भगवन् ! 'सत्' नारक उत्पन्न होते हैं या 'असत्' ? इसी तरह 'सत्' तिर्यञ्च, मनुष्य और देव उत्पन्न होते हैं या 'असत्' ? ।
महावीर-गांगेय ! सभी सत् उत्पन्न होते हैं, असत् कोई भी नहीं उत्पन्न होता ।
गांगेय-भगवन् ! नारक, तिर्यञ्च और मनुष्य सत् निकलते (मरते) हैं या असत् ? इसी तरह देव भी सत् च्युत होते (मरते) हैं या असत् ?
महावीर-गांगेय ! सभी सत् निकलते और च्यवते हैं, असत् कोई नहीं मरता च्यवता ।
गांगेय-भगवन् ! यह कैसे ? सत् की उत्पत्ति कैसी ? और मरे हुए की सत्ता कैसी ?
महावीर-गांगेय ! पुरुषादानीय पार्श्व अर्हन्त ने लोक को 'शाश्वत' कहा है, इसमें 'सर्वथा असत्' की उत्पत्ति नहीं होती और 'सत्' का सर्वथा नाश भी नहीं होता ।
गांगेय-भगवन् ! यह वस्तुतत्त्व आप स्वयं आत्मप्रत्यक्ष से जानते हैं या किसी हेतुप्रयुक्त अनुमान से अथवा किसी आगम के आधार से ?
१. प्रवेशन के संबंध में अन्य भी बहुत से प्रश्नोत्तर हैं जो यहाँ नहीं दिये गये ।
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