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श्रमण भगवान् महावीर ३२. बत्तीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४८१-४८०)
वर्षाऋतु के अनन्तर भगवान् ने काशीकोशल के प्रदेशों में विहार किया और ग्रीष्मकाल में आप फिर विदेहभूमि को लौटे । गांगेय की प्रश्न-परंपरा
भगवान् वाणिज्यग्राम के बाहर दूतिपलाश चैत्य में ठहरे हुए थे । प्रतिदिन धार्मिक व्याख्यान होते थे । एक दिन व्याख्यान समाप्त हो चुका था । सभाजन अपने-अपने स्थानों को प्रयाण कर चुके थे । उस समय गांगेय नामक एक पापित्य मुनि वहाँ आये और भगवान् से कुछ दूर खड़े रहकर बोले-भगवन् ! नरकावास में नारक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?
महावीर-गांगेय ! नारक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी ।
गांगेय-भगवन् ! असुरकुमारादि भुवनपति देव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?
___महावीर-गांगेय ! भुवनपति सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी ।
गांगेय-भगवन् ! पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?
महावीर-~-गांगेय ! पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय जीव अपने अपने स्थानों में निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं ।
गांगेय-भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ?
महावीर-गांगेय ! द्वीन्द्रिय जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी ।
इसी तरह त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय, तिर्यञ्च, मनुष्य तथा देव भी सान्तर और निरन्तर उत्पन्न होते हैं ।
गांगेय-भगवन् ! नारक जीव नरक-स्थान से सान्तर निकलते हैं या निरन्तर ?
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