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________________ १६८ श्रमण भगवान् महावीर ३२. बत्तीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४८१-४८०) वर्षाऋतु के अनन्तर भगवान् ने काशीकोशल के प्रदेशों में विहार किया और ग्रीष्मकाल में आप फिर विदेहभूमि को लौटे । गांगेय की प्रश्न-परंपरा भगवान् वाणिज्यग्राम के बाहर दूतिपलाश चैत्य में ठहरे हुए थे । प्रतिदिन धार्मिक व्याख्यान होते थे । एक दिन व्याख्यान समाप्त हो चुका था । सभाजन अपने-अपने स्थानों को प्रयाण कर चुके थे । उस समय गांगेय नामक एक पापित्य मुनि वहाँ आये और भगवान् से कुछ दूर खड़े रहकर बोले-भगवन् ! नरकावास में नारक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? महावीर-गांगेय ! नारक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । गांगेय-भगवन् ! असुरकुमारादि भुवनपति देव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? ___महावीर-गांगेय ! भुवनपति सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । गांगेय-भगवन् ! पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? महावीर-~-गांगेय ! पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय जीव अपने अपने स्थानों में निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं । गांगेय-भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? महावीर-गांगेय ! द्वीन्द्रिय जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । इसी तरह त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय, तिर्यञ्च, मनुष्य तथा देव भी सान्तर और निरन्तर उत्पन्न होते हैं । गांगेय-भगवन् ! नारक जीव नरक-स्थान से सान्तर निकलते हैं या निरन्तर ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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