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________________ तीर्थंकर-जीवन १६७ चाँदी, सोना आदि किसी प्रकार की धातु के पात्र नहीं रखता । वह लोह, जप, ताम्र, आदि किसी भी धातु का बन्धन नहीं रखता । वह एक गेरुआ चादर के अतिरिक्त कोई भी रंगीन वस्त्र नहीं रखता । वह एक ताम्रमय पवित्रक के सिवा हार, अर्धहार, एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, मुरवि, कण्ठमुरवि, प्रालंबक, त्रिसर, कटिसूत्र, मुद्रिका, कटक, त्रुटित, अंगद, केयूर, कुण्डल, मुकुट, चूडामणि आदि कुछ भी आभूषण नहीं पहनता । वह एक एक कर्णपूर के अतिरिक्त किसी प्रकार का पुष्पमाल्य नहीं धारण करता । वह गंगा नदी की मिट्टी के अतिरिक्त अगर, चन्दन, कुंकुम आदि से गात्रविलेपन नहीं करता । वह अपने लिए बनाया, लाया, खरीदा तथा अन्य दूषित आहार ग्रहण नहीं करता । वह अपध्यान, प्रमादाचरित, हिंस्रप्रदान, और पापकर्मोपदेशरूप चतुर्विध अनर्थदण्ड से दूर रहता है। वह दिन में मागध आढक प्रमाण बहता हुआ स्वच्छ जल स्नान के लिए ग्रहण करता है और अर्ध आढक पीने तथा हाथ-पाँव धोने के लिए, परन्तु यह जल भी वह अन्य का दिया हुआ लेता है, स्वयं जलाशय से नहीं लेता । वह अर्हन्तों और उनके चैत्यों (मूर्तियों) को छोड़ अन्यतीर्थिकों, उनके देवों और अन्यतीर्थिक-परिगृहीत अर्हच्चैत्यों को वन्दन नमस्कारादि नहीं करता । गौतम-भगवन् ! अम्मड परिव्राजक आयुष्य पूर्ण कर यहाँ से किस गति में जायगा ? महावीर-गौतम ! अम्मड छोटे बड़े शीलव्रत, गुणव्रत, पोषधोपवासादि से आत्म-चिन्तन करता हुआ बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक वृत्ति में रह कर अन्त में एक मास का अनशन करके देह का त्याग कर ब्रह्मदेवलोक में देवपद को प्राप्त करेगा और अन्त में अम्मड का जीव महाविदेह में मनुष्य जन्म पाकर निर्वाण प्राप्त करेगा' । काम्पिल्य से भगवान् ने वापस विदेहभूमि की तरफ प्रस्थान किया और वर्षावास वैशाली में किया । १. औपपातिकसूत्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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