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श्रमण भगवान् महावीर
परिव्राजक काम्पिल्यपुर में एक ही समय सौ घरों में भोजन करता और सौ घरों में रहता है, सो यह कैसे ?
महावीर गौतम ! अम्मड के विषय में लोगों का यह कहना
यथार्थ है
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गौतम -- भगवन् ! यह कैसे ?
महावीर—गौतम ! अम्मड परिव्राजक विनीत और भद्र प्रकृति का पुरुष है । वह निरन्तर छट्ट छट्ट का तप करता है । सूर्य के सामने मुख कर दोनों भुजायें ऊँची करके धूप में खड़ा होकर आतापना करता है । इस दुष्कर तप, शुभ परिणाम और प्रशस्त लेश्याओं की शुद्धि से विशेष कर्मों का क्षयोपशम होकर अम्मड को वीर्य - लब्धि, वैक्रिय-लब्धि और अवधिज्ञानलब्धि प्राप्त हुई है । इन लब्धियों के बल से अम्मड अपने सौ रूप बन कर सौ घरों में रहता और भोजन करता हुआ लोगों को आश्चर्य दिखाता है ।
गौतम — भगवन् ! क्या अम्मड परिव्राजक निर्ग्रन्थ धर्म की दीक्षा लेकर आपका शिष्य होने की योग्यता रखता है ?
महावीर नहीं, गौतम ! अम्मड हमारा श्रमण शिष्य नहीं होगा । अम्मड जीवाजीवादि-तत्त्वज्ञ श्रमणोपासक है और श्रमणोपासक ही रहेगा । वह स्थूल हिंसा, स्थूल असत्य तथा स्थूल अदत्तादान का त्यागी, सर्वथा ब्रह्मचारी और संतोषी है । वह मुसाफिरी में मार्ग के बीच आनेवाले जल के अतिरिक्त कूप, नदी आदि किसी प्रकार के जलाशय में नहीं उतरता । वह गाड़ी, रथ, पालकी आदि यान अथवा घोड़ा, हाथी, ऊँट, बैल, भैंसा, गदहा आदि वाहन पर बैठकर यात्रा नहीं करता ।
अम्मड नाटक और खेल तमाशे नहीं देखता । वह स्त्री कथा, भोजन कथा, देश कथा, राज कथा, चौर कथा तथा अन्य अनर्थकारी विकथाओं से दूर रहता है ।
अम्मड हरी वनस्पति का छेदन-भेदन और स्पर्श तक नहीं करता । वह तुम्बा, काष्ठपात्र या मृत्तिकामात्र के अतिरिक्त लोह, त्रपु ताम्र, जिस्त, सीसा,
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