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श्रमण भगवान् महावीर द्रव्यमास (ष) दो प्रकार के कहे हैं—अर्थमास (माष) और धान्य मास (माष) । इनमें से अर्थमाष दो प्रकार के होते हैं-सुवर्णमाष और रूप्यमाष । ये दोनों श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । रहे धान्यमाष, सो उनके भी शस्त्रपरिणत, अशस्त्रपरिणत, एषणीय, अनेषणीय, याचित, अयाचित, लब्ध, अलब्ध आदि अनेक प्रकार हैं । इनमें शस्त्रपरिणत एषणीय याचित और लब्ध धान्यमाष श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य हैं, शेष अभक्ष्य ।
सोमिल-भगवन् ? 'कुलत्था' आपके भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ? महावीर-कुलत्था भक्ष्य भी हैं, अभक्ष्य थी। सोमिल-यह कैसे ? |
महावीर-ब्राह्मण-ग्रन्थों में 'कुलत्था' शब्द के दो अर्थ होते हैंकुलथी धान्य और कुलीन स्त्री ।
कुलीन स्त्री तीन प्रकार की होती है-कुलकन्या, कुलवधू और कुलमाता । ये कुलत्था श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं ।
_ 'कुलत्था' धान्य भी सरिसवय की तरह अनेक तरह का होता है, उसमें शस्त्रपरिणत एषणीय याचित और लब्ध 'कुलत्था' श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए भक्ष्य हैं, शेष अभक्ष्य ।
सोमिल-भगवन् ! आप एक हैं या दो? तथा आप अक्षय, अव्यय और अवस्थित हैं या भूत-वर्तमान-भविष्यत् के अनेक रूप धारी ?
महावीर-मैं एक भी हूँ और दो भी । मैं अक्षय-अव्यय-अवस्थित हूँ और भूत-वर्तमान-भविष्यद्रूपधारी भी ।
सोमिल-भगवन्, यह कैसे ? ।
महावीर--सोमिल ! मैं आत्मद्रव्य रूप से एक हूँ और ज्ञान-दर्शन रूप से दो भी । मैं आत्मप्रदेशों की अपेक्षा से अक्षय अव्यय अवस्थित हूँ पर उपयोग-पर्याय की अपेक्षा से भूत, वर्तमान और भविष्यत् के नाना रूपधारी भी हूँ।
धर्म-चर्चा सुन कर सोमिल ब्राह्मण तत्त्वमार्ग को समझ गया । वह
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