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________________ तीर्थंकर-जीवन संस्तारक स्वीकार करके विचरता हूँ । यही मेरा प्रासुक विहार है । सोमिल-भगवन् ! सरिसवय आपके भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ? महावीर-सरिसवय भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी । सोमिल-दोनों प्रकार कैसे ? महावीर—ब्राह्मण्यनयों में (ब्राह्मणों के ग्रन्थों में) सरिसवय शब्द के दो अर्थ होते हैं-एक मित्र सरिसवय (सदृशवयाः) और दूसरा धान्य सरिस (सर्षपः) । इनमें मित्र-सरिसवय तीन प्रकार के कहे हैं-१. सहजात, २. सहवधित और ३. सहपांशुक्रीडित । ये सरिसवय श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । धान्य-सरिसवय दो प्रकार के होते हैं--१. शस्त्र-परिणत और २. अशस्त्र-परिणत । इनमें जो अशस्त्र-परिणत होते हैं वे श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । शस्त्रपरिणत सरिसवय भी दो प्रकार के होते हैं-१. एषणीय और २. अनेषणीय । इनमें अनेषणीय श्रमण निर्ग्रन्थों के अभक्ष्य है । एषणीय भी दो प्रकार के होते हैं---याचित और अयाचित । इनमें अयाचित श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । याचित भी दो प्रकार के होते है-लब्ध और अलब्ध । इनमें अलब्ध श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं । केवल शस्त्रपरिणत एषणीय याचित और लब्ध धान्य सरिसवय ही श्रमण निर्ग्रन्थों को भक्ष्य हैं । इस कारण सरिसवय भक्ष्य भी कहे जा सकते हैं और अभक्ष्य भी । सोमिल-भगवन् ! 'मास' आपको भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ? महावीर--ब्राह्मण्यनयों में 'मास' दो प्रकार के कहे गये हैं-द्रव्यमास (माष) और कालमास । इनमें कालमास श्रावण से आषाढ़ पर्यन्त बारह हैं, जो अभक्ष्य हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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