SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० श्रमण भगवान् महावीर होने पर भगवान् ने राजगृह से चम्पा की ओर विहार कर चम्पा के पश्चिम में 'पृष्ठचम्पा' नामक उपनगर में ठहरे । पृष्ठ चम्पा के राजा शाल और उसके छोटे भाई युवराज महाशाल ने महावीर का उपदेश सुना । संसार से विरक्त होकर शाल ने कहा-भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ और अपना राज्य युवराज महाशाल को सौंप कर आपके चरणों में आकर श्रमण धर्म को स्वीकार करूँगा। भगवान् ने कहा--प्रतिबन्ध न रक्खो । घर जाकर शाल ने अपने छोटे भाई को राज्यारूढ़ होने की प्रार्थना की पर महाशाल ने उसका स्वीकार नहीं किया और कहा कि जो धर्म आपने सुना है वही मैंने भी सुना है । जैसे आप संसार से विरक्त हैं वैसे मैं भी विरक्त हूँ। मैं भी प्रव्रज्या ग्रहण करूँगा ।। महाशाल के अतिरिक्त शाल के राज्य का कोई उत्तराधिकारी नहीं था । महाशाल के अस्वीकार करने पर अपने भागिनेय गागली नामक राजकुमार को बुला कर उसे राज्यारूढ़ कर शाल तथा महाशाल ने भगवान् महावीर के वरद हाथ से श्रमण धर्म की दीक्षा ली । कामदेव के दृष्टान्त से श्रमण-निर्ग्रन्थों को उपदेश पृष्ठ चम्पा से भगवान् चम्पा के पूर्णभद्र चैत्य में पधारे । उन दिनों चम्पा निवासी श्रमणोपासक कामदेव अपने घर का कार्यभार ज्येष्ठ पुत्र के ऊपर छोड़ कर भगवान् महावीर के अन्तिम उपदेशों का पालन करने लगे थे । एक दिन कामदेव अपनी पौषधशाला में पौषध करते हुए रात्रि के समय ध्यान कर रहे थे । करीब मध्यरात्रि के समय वहाँ एक देव प्रकट हुआ और कामदेव को ध्यान से चलित करने का प्रयत्न करने लगा । पहले उसने पिशाचरूप में, फिर हाथी के रूप में और अन्त में सर्प के रूप में विविध विभीषिकाएँ और यातनाएँ दिखाईं पर कामदेव अपने ध्यान और विश्वास से विचलित न हुए । अन्त में देव हार कर उसकी प्रशंसा करता हुआ चला गया । प्रातःसमय कामदेव भगवान् महावीर के समवसरण में गए और वन्दन नमस्कार कर धर्मोपदेश सुनने बैठे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy