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________________ १५८ श्रमण भगवान् महावीर गया तो उस दशा में चोरी हुए उस भाण्ड की व्रत पूरा करने के बाद श्रमणोपासक के तलाश करने पर 'वह अपने भाण्ड की तलाश करता है' यह कैसे कहा जायगा ? जब उसका वह भाण्ड ही नहीं रहा तो उसकी तलाश करने का उसे क्या अधिकार है ? महावीर — गौतम ! व्रतिदशा में उसकी भावना यह होती है कि यह सोना, रूपा, कांस्य, दूष्य या मणि- रत्नादि कोई पदार्थ मेरा नहीं है । इस प्रकार उस समय उन पदार्थों से वह अपना संबन्ध छोड़ देता है— उनका उपयोग नहीं करता । पर उन पदार्थों पर से उसका ममत्वभाव नहीं छूटता और ममत्वभाव के न छूटने से वह पदार्थ पराया नहीं होता, उसी का रहता है । गौतम — भगवन् ! सामायिकव्रत में स्थित श्रमणोपासक की भार्या से कोई संगम करे तो क्या कहा जायगा भार्या से संगम ? या अभार्या से ? महावीर — श्रमणोपासक की भार्या से संगम करता है यही कहना चाहिये । गौतम —- भगवन् ! शीलव्रत, गुणव्रत और पौषधोपवास से भार्या 'अभार्या' हो सकती है ? महावीर - हाँ, गौतम ! व्रतिदशा में श्रमणोपासक की यह भावना होती है कि माता, पिता, भाई, बहन, भार्या, पुत्र, पुत्री और पुत्रवधू कोई मेरा नहीं है । यह भावना होते हुए भी उनसे उसके प्रेमबन्धनों का विच्छेद नहीं होता । इसलिये भार्या - संगम ही कहा जायगा, 'अभार्या संगम' नहीं' । श्रमणोपासक और आजीवकोपासक श्रमणोपासक गतकाल में किए हुए प्राणातिपात का ४९ प्रकार से प्रतिक्रमण करता है, वर्तमानकालीन प्राणातिपात का ४९ प्रकार से नियमन करता है और अनागत काल के प्राणातिपात का ४९ प्रकार से निषेध करता १. भगवती श० ८, उ० ५, पृ० ३६७ । Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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