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________________ तीर्थंकर-जीवन १५७ हस्तिनापुर से भगवान् मोका नगरी की तरफ पधारे और मोका के नन्दन चैत्य में ठहरे जहाँ पर उन्होंने अग्निभूति और वायुभूति के प्रश्नों के उत्तर में देवों की विकुवर्णाशक्ति का वर्णन करने के उपरान्त ईशानेन्द्र और चमरेन्द्र के पूर्वभवों का निरूपण किया । मोका से भगवान वापस लौटे और वाणिज्य ग्राम में जाकर वर्षा चातुर्मास्य व्यतीत किया । २९. उनतीसवाँ वर्ष (वि० पू० ४८४-४८३) वर्षा काल की समाप्ति होते ही भगवान् ने विदेह भूमि से मगध की तरफ प्रयाण किया और विहार करते हुए आप राजगृह के गुणशील चैत्य में पधारे । उस समय राजगृह में निग्रंथ प्रवचन के अनुयायियों की संख्या विशाल थी फिर भी अन्य दार्शनिकों का वहाँ अभाव नहीं था । बौद्ध, आजीवक और अन्यान्य संप्रदाय के श्रमण और गृहस्थ भी वहाँ अच्छी संख्या में बसते थे और समय समय पर एक दूसरे की मान्यताओं का खण्डन और उपहास किया करते थे । ___ एक समय आजीवक भिक्षुओं के संबन्ध में इन्द्रभूति गौतम ने भगवान् से पूछा-आजीवक लोग स्थविरों से पूछते हैं कि निर्ग्रन्थो ! तुम्हारे श्रमणोपासक का, जब वह सामायिकव्रत में रहा हुआ हो, कोई भाण्ड चोरी चला जाय तो सामायिक पूरा कर वह उसकी तलाश करता है या नहीं ? यदि करता है तो वह अपने भाण्ड की तलाश करता है या पराये की ? उत्तर में भगवान् ने कहा-गौतम ! वह अपने भाण्ड की तलाश करता है, पराये की नहीं । गौतम-भगवन् ! शीलव्रत, गुणव्रत, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से उसका भाण्ड 'अभाण्ड' नहीं हो जाता ? __महावीर-हाँ, सामायिक, पौषधादि व्रत में स्थित श्रमणोपासक का भाण्ड 'अभाण्ड' हो जाता है । गौतम-भगवन् ! जब व्रतिदशा में उसका वह भाण्ड 'अभाण्ड' हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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