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तीर्थंकर-जीवन
१५५ सामग्री वहाँ रख कर हस्तिनापुर में गये । वहाँ पर उन्होंने अपने ज्ञान से जाने हए सात द्वीप-समुद्रों की बात कही और बोले-संसार भर में सात ही द्वीप और समुद्र हैं, अधिक नहीं ।
जिस समय भगवान् महावीर हस्तिनापुर पधारे थे उस समय शिव भी वहीं थे और अपने सात द्वीप-समुद्र विषयक सिद्धान्त का प्रतिपादन कर रहे थे । लोगों में इस नये सिद्धान्त पर टीका-टिप्पणियाँ हो रही थीं ।
इन्द्रभूति गौतम भगवान् की आज्ञा ले हस्तिनापुर में भिक्षाचर्या को गये तो उन्होंने भी सात द्वीप-समुद्रों की बात सुनी । गौतम ने सहस्राम्रवन में लौट कर उक्त जनप्रवाद के संबन्ध में भगवान् से पूछा कि 'सात ही द्वीप-समुद्र हैं' यह शिवर्षि का कथन ठीक है क्या ? और इस विषय में आपका क्या सिद्धान्त है ?
भगवान् ने कहा-सात द्वीप-समुद्र संबन्धी शिवर्षिका सिद्धान्त मिथ्या है । इस विषय में मेरा कथन यह है कि जम्बूद्वीप प्रभृति असंख्य द्वीप और लवण आदि असंख्य ही समुद्र हैं । इन सब का आकार विधान तो एकसा है पर विस्तार भिन्न-भिन्न है।
। भगवान् के पास उस समय सभा जमी हुई थी । दर्शन, वन्दन और धर्मश्रवण के निमित्त आए हुए नगर-निवासी अभी वहीं बैठे हुए थे। धर्मश्रवण कर नगर-निवासीजन अपने अपने स्थान पर गये । सब के मुँह में सुने हुए उपदेश की-विशेषतः शिवर्षि के सिद्धान्त विषयक गौतम के प्रश्नोत्तर की चर्चा थी । वे कहते थे—'शिवर्षि का सात द्वीपसमुद्र संबन्धी सिद्धान्त ठीक नहीं है । श्रमण भगवान् महावीर कहते हैं कि द्वीप-समुद्र सात ही नहीं, असंख्य है।'
शिवर्षि महावीर की योग्यता से अपरिचित नहीं थे। उनके ज्ञान और महत्त्व की बातें उन्होंने कई बार सुन रक्खी थी । जब उन्होंने अपने सिद्धान्त के विषय में महावीर का अभिप्राय सुना तो वे विचार में पड़ गये । मन ही मन बोले-'यह कैसी बात है ? द्वीप-समुद्र असंख्य हैं ? मैं तो सात ही देख रहा हूँ और महावीर असंख्य बताते हैं ? क्या मेरा ज्ञान अपूर्ण है ?'
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