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तीर्थंक जीवन
दस को जीतने के बाद हजारों को आसानी से जीत लेता हूँ । केश - गौतम ! वे शत्रु कोन ?
गौतम - - हे मुनि ! 'बेबस' आत्मा ही अपना शत्रु है जिसके जीतने से क्रोध, मान, या, लोभ नामक कषाय- शत्रु जीत लिए जाते हैं और इस तरह इन पाँच के गीत लेने से श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, जिह्वा और स्पर्शात्मक पाँच इन्द्रियरूप शत्रु जीते जाते हैं । इन दस शत्रुओं को यथान्याय जीत कर मैं सुख से विचरता हूँ
केशी - गौतम : इस लोक में बहुसंख्यक लोग पाशों से बाँधे हुए हैं, तो तुम इस प्रकार स् तंत्र होकर कैसे फिरते हो ?
गौतम — हे मुनि ! ने उपाय से उन पाशों को काट दिया है और उनका सर्वथा नाश कर पाश क होकर फिरता हूँ ।
केशी-वे पाश कौन
गौतम — राग, द्वेष और रुइ बन्धन ये तीव्र और भयंकर पाश हैं । इन सबका यथान्याय उच्छेद करके आचार के अनुसार विचरता हूँ ।
केशी — जीव के हृदय में ए फलों से फलती है । गौतम ! उस
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गौतम - उस संपूर्ण बेल को और ऐसा करके मैं विषैले फलों के
बेल उगती है, बढ़ती है और विषैले 'ल को तुमने कैसे उखाड़ दिया ? ले काय, फिर उसका मूल उखाड़ा ... से बच गया हूँ ।
केशी - गौतम ! वह बेल कौन ?
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गौतम - हे महामुनि ! वह बेल है 'भवतृष्णा' । यह स्वयं भयंकर है और भयंकर फल देती है । इसे मूल से उखाड़ कर मैं यथान्याय विचरता हूँ ।
केशी - शरीर में जाज्वल्यमान घोर अग्नि रहती है जो शरीर को जलाती रहती है । गौतम ! उस देहस्थ अग्नि को तुमने किस प्रकार शान्त किया ?
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