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श्रमण भगवान् महावीर गौतम–महामेघ से बरसे हुए उत्तम जल को लेकर उस अग्नि में छिड़का करता हूँ जिससे मुझे वह नहीं जलाती ।।
केशी–गौतम ! वह अग्नि कौन ?
गौतम–कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) विविध प्रकार की 'अग्नि' है और श्रुतज्ञान, शील और तप 'जल' । इस श्रुत शीलादि की जलधारा से छिड़की हुई कषाय-अग्नि शान्त हो जाती है । वह मुझे जला नहीं सकती ।
केशी–गौतम ! जिस पर तुम चढ़े हो वह घोड़ा बड़ा साहसिक, भयंकर और दुष्ट है । वह बड़ा तेज दौड़ता है। वह घोड़ा तुम्हें उन्मार्ग पर नहीं ले जाता ?
गौतम-दौड़ते हुए उस घोड़े को मैं श्रुतज्ञान की लगाम से पकड़े रखता हूँ जिससे वह मार्ग को नहीं छोड़ता ।
केशी-गौतम ! वह घोड़ा कौन ?
गौतम-'मन' यह साहसिक, भयंकर और अत्यन्त तेज दोड़ने वाला दुष्ट घोड़ा है जिसे मैं धर्मशिक्षा से वश में किये रहता हूँ।
केशी-गौतम ! इस जगत् में अनेक कुमार्ग हैं जिन पर चढ़ कर जीव भटकते हुए मर जाते हैं, परन्तु गौतम ! तुम मार्ग मैं कैसे भूले नहीं पड़ते ?
गौतम-कुमारश्रमण ! जो मार्ग पर चलते हैं और जो उन्मार्गगामी हैं उन सब को मैं जानता हूँ । यही कारण है कि मैं मार्ग नहीं भूलता ।
केशी-वह मार्ग कौन ?
गौतम-जिनोपदिष्ट 'प्रवचन' सन्मार्ग है और इसके विपरीत 'कुप्रवचन' उन्मार्ग । जो जिन-प्रवचन के अनुसार चलते हैं वे मार्गगामी हैं और कुप्रवचन पर चलनेवाले उन्मार्गगामी ।
केशी-मुनि गौतम ! जलप्रवाह के वेग में बहते हुए प्राणियों की
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