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तीर्थंकर-जीवन
१४७ उन दिनों पापित्य केशीकुमार श्रमण भी अपने शिष्यगण सहित श्रावस्ती के तिन्दुकोद्यान में आए हुए थे। केशी-गौतम संवाद
दोनों स्थविरों के शिष्य एक दूसरे समुदाय में आचार-भिन्नता देखकर सोचने लगे-'यह धर्म कैसा और वह कैसा ? यह आचार व्यवस्था कैसी
और वह कैसी ? महामुनि पार्श्वनाथ का धर्म चातुर्याम और वर्धमान का पंचशिक्षिक, एक धर्म सचेलक और दूसरा अचेलक ? मोक्षप्राप्तिरूप एक ही कार्य की साधना में प्रवृत्त होनेवालों के धर्म तथा आचार मार्ग में इस प्रकार विभेद होने का क्या कारण होगा ? अपने शिष्यगणों में चर्चास्पद बनी हुई बातें केशी और गौतम ने सुनी और परस्पर मिल कर इनका समाधान करने का उन्होंने निश्चय किया ।
गौतम उचितवेदी थे । वे यह समझ कर कि कुमार-श्रमण केशी वृद्ध कुल के पुरुष हैं, अपने शिष्य समुदाय के साथ केशी के स्थान पर तिन्दुकोद्यान में गये ।
केशी ने गौतम का उचित आदर किया । कुशासन देकर बैठने का इशारा किया । गौतम बैठे । दोनों स्थविर सूर्य और चन्द्र की तरह शोभायमान होने लगे ।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ और वर्धमान के श्रमणों का यह सम्मेलन एक अभूतपूर्व घटना थी। इसे देखने और संवाद सुनने के लिये अनेक अन्यतीर्थिक साधु और हजारों गृहस्थ लोग वहाँ एकत्र हुए ।
केशी ने कहा-महाभाग गौतम ! आपसे कुछ पूर्छ ? गौतम-पूज्य कुमारश्रमण ! आपको जो कुछ पूछना हो, हर्ष से पूछे ।
केशी-महानुभाव गौतम ! महामुनि पार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म का उपदेश किया और भगवान् वर्धमान ने पञ्चशिक्षिक धर्म का । इस मत-भेद का क्या कारण है ? समान मुक्ति-मार्ग के साधकों के धर्ममार्ग में इस प्रकार की विभिन्नता क्यों ? गौतम ! इस मतभेद को देख कर आपको शंका और
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